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बिहारी बिहार ।

5 44343 44 .4....******* * ******* ****** । २०२ बिहारीविहार। पग पग होत प्रयाग कहो कोऊ किन कवि जन । कोटि प्रयागन वारि फेकिये ब्रजवारूकन ॥ हरिराधा के चरन रहे जहँ सुकबि केलिसजि । तेहिं । वृन्दावन की रज क भजि और सवै तजि ॥ ७९७ ॥: :: :.:. :. अपने अपने मत लगे बादि मचावत सोर। ज्य त्यौं सबै कों सेइबो एकै नन्दकिसोर ॥ ६८३ ॥ एकै नन्दकिसोर भजनहित बाट अनेकन । अधिकारिन के भेद देखि विरचे पण्डितगर्न । ताही काँ मन लाइ सुकवि जागते अरु सपने । देख तेहाँ लगि सार करत सव अपने अपने ॥ ७६६ ॥ पुनः । । । नन्दाकिसोर हिँ कोऊ राम कोऊ सिव भाषत । कोऊ काली कहत नाम कोऊ गनपति राषत । निराकार कोऊ सुकवि करत आकारकलपने । स्याम । हिँ लखि पुनि बिसरि जात सव चक बक अपने ॥ ७६.६ ॥ . पुन: । : ' . ' नन्दकिसोर हिँ कोऊ हाथ धनुवान गहावत । कोऊ कर दे खड़ सिंह की पीठ चढ़ावत ॥ कोऊ बजावत डमरु अगडवं बोलि होत नंत । सुकवि स्यास । पै सवै कहते अपने अपने मत ॥ ८०० ॥ पुनः । से एकै नन्दकिसोर सेइवो कोऊ बहाने । परमेत मैं को मतंवारे जेहिँ मारत ताने ॥ अल्ला ईसा राम अहँ तेहिँ नाम कलपने । सुकबि तेहाँ लगि गीतन गावत अपने अपने ॥ ८०१ ॥ पुनः एकै नन्दकिसोर हमारे हैं रखवारे । नन्ददुलारे गोपनप्यारे नैननतारे ॥ सुकवि ताहि भजि जगतजाल जानत ज्यौं सपने । सुनिहँ नहिँ सब सोर करहु किन अपने अपने ॥ ८०२ ॥ ..

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