पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२८८

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बिहारी बिहार ।

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= = विहारविहार । । २०५। ज्य हेही त्याँ हहु गो हौं हरि अपनी. चाल। .. | हठ न करी अति कठिन है मोतारिधी गोपाल ।। ६९२ ॥ । मातारियो गोपाल अहे अतिकठिन निहारो । गज अरु गीधसमान मोहि प्रभु मति निरधारो ।। पेह सुख अरु दुःख इहाँ जसो कलु कैहों । चिन्ता मेरी तजहु सुकवि हुँहों ज्यों हृह ॥ ११ ॥ | करी *कुवत जग कुटिलता तजें न दीनदयाल । | दुखी होहु गे सरल हिय बंसत त्रिभङ्गी लाल ॥ ६९३ ।। | बसत त्रिभद्दी लाल हीय हूँ चहिय त्रिभङ्गी । वाके सूधे भयँ होइहे तुम कों तङ्गी ॥ तीन गुनने की चोट देइ टेड़ो कीनो सँग । सुकाव कुटिलता तज़ ३ नाहिँ किन करो कुवत जग ।। ८१२ ॥ माहि तुम्हें वाढी वहस को जीते जदुराज । | अपने अपने विरद की दुहुन निवाहन लाज ॥ ६९४ ॥ दुहुन निबाहन लाज पड़ी हैं अड़ अति भारी । मैं अधमनसिरताज सुकवि तुस अधमउधारी ।। जऊ किते तार तुम कलुपी कामी कोही । छोटो मटा पापी तउ गनिया मति मोही ॥ ८१३ ।। समें पलट पलटें प्रकृति को न तजे निजचाल । | अकरुन करुना करो यह कपृत कलिकाल ॥ ६९५ ।। | यह कपुत कलिकाल कृपा करुनाकर खाई। करत नाहिँ के कान रहा। । फय से ही रोई ।। गज की दुना विलाकि सुकवि तुम को न परी कल । वा । जुर्ग की सी मा के दर्ज स्याम समें पल ।। ८१४ ॥