पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/२९

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बिहारी के समय के विषय में विवाद । |. मुझे ठीकं स्मरण हैं कि किस समय किसी विद्वान् ने लिखा था कि मैं १५१९ चैतं बदि ६ को । सोमबार नहीं आता ईसँलिये संख्या ४६ वालों दोहा अप्रामाणिक है अथवीं यह समयं ठीक नहीं है। । कदाचित् पेरिडत बिनार्यकशास्त्र बेतल ने लिखा ३ धीं किं इस दोहे का अर्थं सं० १ ४१ हैं कि जलधिंका अंध ४ भी है और इस संबेत् में चैत्रे बंदिई की ठीक सोमबार मिल जाती हैं । भाषा केविती के पैरम स्नहीं विद्दान् युतं श्रेयर्सन सहिब ने भी इंसं दोह को जेलं लिखा है और लिखी हैं कि उस दिने सैन् १६६२ की ६४ वीं जनवरीं धौं तथा चं उस तारीख को गुरुवार धीं ॥

मैंने इसकी स्वयं गर्णित किया और ग्रेयरसंन् साहेब की पंचं लिखा किं ३४-३ १६६६ की ती कथमपि

गुरुवार नहीं पड़ता है। वे इस समय बलायत जाने की त्वरा में मैं उनने मुं* थंही उत्तर दिया कि महामहोपाध्याय पंडित सुधाकरे की कशीबासी कौंसम्मंति से यह लिखा गया है ।। मैंने यह बिषय ग्वालियर के पण्डित श्रीउपेन्ट्राचार्यजी को लिखा और उनने महाराज सेंधिया के पण्डितों से निर्णय कर मेरे पास व्यवस्था भेजी उसमें पण्डित बंशीधर पांडे, पण्डित द्वारकाप्रसाद और पण्डित स्यामलालजी की सन्मति में उस दिन शुक्रवार था । और पण्डित बाबू ज्यौतिषी के भाता श्री से युत पण्डित विष्णुदत्त ज्यौतिषी राजदैवज्ञ कौ सम्मति में उसदिन बुधबार था। मैं इन पण्डित विष्णुदत्त राजदैवज्ञ का अत्यन्तही कृतज्ञ हैं क्योंकि इनने अतिपरिश्रम करके उस वर्ष का पूरा पञ्चाङ्ग ही बना के मेरे पास भेज दिया है। मैं इन सम्मतियों के पाने से बड़ी घबड़ाहट में था और बार बार इस पंचाग को फैला देखने ने लगा। मैंने इसमें देखा कि बैशाख कृष्णपक्ष ६ रविवार को ६० घड़ी है और दूसरे दिन सोमवार को भौ ३६ पल है। यों सोम षष्ठी तो मिली पर बैशाख डु इस पर मैरै चित्त में अकस्मात् प्रतिफलित हुआ कि वल्लभादि सम्प्रदायों में शुक्लादि मास माना जाता है । इस सास गणना के अनुयायी प्रञ्चाङ्ग

  • अब भी पण्डित गट्टलालजी सी आई ई० तथा गोस्वामी नृसिंहलाल जी के प्रसिद्ध हैं सी शुक्लादि मास

के मानने में यही चैत्र कृष्ण षष्ठी समझी जायगी । बस मेरी समझ में निःसन्देह उस दोहे में इसी शुक्लादि । के के क्रम से चैत्रहण ६.चन्ट्रबार. लिखा है : .. ... ... ... . .. .. . । यदि इस दोहे से सं० : १४१८. समझे तो ऐतिहासिक दृष्टि से यह कल्पना केवल 'बोल लीला ही हो । । जाती है इसलिये यह पक्ष तो अग्राह्यही ऊँचता है। . . .. . यदि कोई विद्वान् लॉग इससे भी उत्तम पर्थ निकले तो वही ग्राह्य होगी। । ॐ संवत् १९४३ की उदयपुर की दिनचर्या ( Diary ) में।