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बिहारी बिहार ।

' ' विहारविहार ।। कीजै चित सोई त जिहिँ पतितन के साथ ।। मेरे गुन अवगुनगननि गनो न गोपीनाथ ॥ ६९९ ॥ गनो न गोपीनाथ हहा गुन गुन मेरे। कैसै गनिहो एक सुन्न इक अन्त न हेरे ॥ नाम पतितपावन अपनो सॉच करि लीजै । सुकवि करोरन तरे दया मोहू पे कीजे ।। ६२० ॥ '

  • प्रगट भये द्विजराजकुल बसे सुबस ब्रज आय ।।

मेरे हरौ कलेस सब केसव केसवराय ॥ ७०० ॥ | केसव केसवराय दई जिन मो क सतमति । चालकाल स हैं जोई इक । मेरे पति गति ।। सुकाव रुचत है जिन्हे कलिन्दीतट वंसावट । जिन हीं की में लहि कृपा ग्रन्थ यह है भयो प्रगट ॥२१॥ ' । • यह टोहा कृदन्त कवि के राय में नहीं है। केशव बिहारी के पिता श्री केशवराय भगवान यह भानुचन्द्रिका हरिप्रकाश यादि में हैं पर इन ने कोई प्रमाण नहीं दिया कि केशव विहारो के पिता है, गुरु , अदपा भर कोई पूज्य थे | कोई पिताही के लिये “केययाय” पद कहते हैं। हरि प्रकाश में दूसरा भी पधं यों है ? हे केशवराय, कण, मेरे, भव के सी, गज गीध आदि को भलि.

  • म । | काशिराज महाराज घेतसिंह के दरबार के पण्डितहरिप्रसाद ने प्रायमय संस्कृतानुवाद

३ 'मवर्क' को अर्घ मुव की भांति हो भमझ कर अनुवाद किया है। यया * प्रादुरभवोद्दिजाधिप कुने जे थममि पागत्य । सुवस्येव ममापि के में हरकेशवोपेन्ट्र"॥ किमी ने यह भी अर्थ किया है कि ‘भरेभुत' 7 निःगे ॥ भगवान् के लिये भी रायपट प्रयुक्त हैं। जैसे दी• १८५ 'हरिराय' रूपए के राय होने से रा को राई ना चाहिये भो मारे बाद में राधा के लिये राई पद प्रसि है राजपुताने ३” भी कह ' राधा को राई कुन पड़ता है। जैसे गीत " का कुवर मी वीरों मांगा राई मी भार" भगवान के म के कार्य रायपद तुलसीदासजी ने भी दिया है । जैसे विनयपत्रिका 'सुमिरि । १ । १ नाक आम राय को '। यह राय पद राजपद का अपभ्रंश है अतएव राज यदुराज । । ४६ : * नि यि यदुराय पाटि पट जगत ममिड ६,r ( चन्द्रवंग में प्रगटे बेत्र में इमे । ५ १ वर्ष म मेरे 'भई ॐ सत्र में इ} रम भयं को ने के लिया है। है