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बिहारी बिहार ।

444444444444444444444422134444444444 विहारविहार ।। । २०६१ --- - --- - - --- ले लाखन की मान चले उनको जो जाँचे । ये विन जाँचे देत हेम हीरा हय साँचे । भागत रिपु ३ पीठि सुनत धौंसा धुनि गहगह । तुअ प्रताप

  • अवधेस सुकवि छायो चहुँदिस रह ॥ ६२६ ॥

पुनः | मज निराखर हू साखर ल जी घर पावें । साँचे गुनिजन प्रान गये हैं। में तहां न जावें ॥ केसिलस दरबार गुनी का सम्पद लहत न । सुकवि और धूरत की ह्याँ धूरतता रहत न ।। ८२७ ॥

  • प्रतिबिम्बित जयसाहति दीपति दर्पनधाम ।।

|सव जग जीतन को कियौ कायव्यूह मनु काम ।। ७०४ ।। कायव्यूह मनु काम कियो निज अंग छवि निरखन। फूल्यो फूल्यो फियो घमण्डन भरि वहु वरपन ॥ श्रीप्रतापनारायनसिंह हिँ लखि लाज्ये अति ।। सुकवि अतनु भयो अाप वारि इहिँ अङ्ग अङ्ग प्रति ॥ २८ ॥ घर घर हिंदुनि तुरकिनी देति असीस सराह ।। पतिन राखि चादर चुरी तें राखी -जयसाह ॥ ७०५ ॥ तें राखी जयलाह साँच पति + दोऊ दल की । मार काट सव मिटी । तयार", " तमि धधर्नरकारि भाषानुसारिनुरबुवचनैः । प्रायभिरेय गुम्फी मुनिगुणवचन्द्रमित- * - ६" परन्तु फुगन्निया में जयगाई शप्ट का त्याग विना किये योभवधेम की गंभा की गई हैं। भीर

  • थिए । ३ । २ फडा हैं कि 'गुनी हो चाहें सूर्य भाग के वन में जयमाह में धन मिलता है

। र । सः भूर भी जो रुपये में रमझे ' मो नुनि के बहाने निन्दा ३ । पं० हरिप्रसाद ने इन। में 1 से 4 के ४ि पट लगा दिया । ये धोखे में पड़ गये ६ । परन्तु युनिया में नि: में दः । एर र प्रम; अर्ध छ; र गः ६ ॥ । ०५ मिद * ८न्य में नहीं हैं ६ दरमुप्तशती में नहीं हैं।

  • * Y Y रिश्मद के सद में 4 नष्ट ६ ६ थर दी। रिप्रकाश और अनवरदन्ट्रिी में

॥ १।३ ** जयर : विजया मधे का भम्बोधन ! -+- एति = प्रतिष्ठा ।