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बिहारी बिहार ।

बिहारविहार। . *अरे होस या नगर में जैयो आप बिचार । कागन हैं जिनि प्रीति करि कोयल दई बिडारि ॥ ७११ ।, | कोयल दई बिडारि बिना अपराध विचारी। मधुर बचन काँ सुनत चोट चचन स मारी॥ तन मन कारे मलभोजिन को अहै बस यी। सुकवि भागि तू बुरो अहै अति अरे हंसे या ॥ ८३८ ॥ +जदपि पुराने बक तऊ सरबर निपट कुचाल । नये भये तो कहा भयो ये मनहरन मराल ।। ७१२ ॥ । ये मनहरन मराल छीर नीरहिँ अलगावत । निर्मल मोती भषत चलत । अति छबि हिँ दिखावत ॥ मान सरोवर साँ हमरे भागन हीं आने । सुकवि हमैं नहिँ भले लगै बक जदपि पुराने ॥ ८३६ ॥ + सखी सिखावति मान बिधि सैननि बरजति बाल । + हरयँ कहि मो-हिय बसत :सदा बिहारीलाल॥७१३॥ सदा बिहारीलाल भये मो हृदयविहारी । उनहित मेरे नैन बहावत आँ- सुनधारी ॥ जागत सोवत उन हिँ दीठि दोउ मेरी धावात । सुकवि कौन कौं। कहा मान तू सखी सिखावति ॥ ८४० ॥ . . काठाढ़ी मन्दिर पै लखै मोहनदुति सुकुमारि । । तन थाके हू ना थकै चखचित चतुर निहारि ॥ ७१४॥ | यह दोहा संस्कृत टीका, अनवरचन्द्रिका, कृष्णदत्त टीका हरिप्रसाद के ग्रन्थ शृङ्गारसप्तशती और में देवकीनन्दन टीका में नहीं है । * यह दोहा हरिप्रसादक़न अनुवाद अनवरचन्द्रिका. शृङ्गारसप्त शतिका और देवकीनन्दन टीका मैं नहीं है। * यह दोहा इरिप्रसाद ग्रन्यं, सं०टी० अनवरचन्द्रिका कृष्णदसटीका और शृङ्गारशप्तशतिका में नहीं है ॥ + हरये धौरे । ॥ यह दोहा हरिप्रसाद अंत । अनुवाद अनवरचन्द्रिका, कृष्णदत्तटीकाः शृङ्गारसप्तशती औ देवकीनन्दन, टौका में नहीं है ।।..