ॐ २१४ बिहारीबिहार।. . पायल पाय लगी रहै लगे अमोलक लाल।। भोडर हू की भासि है बँदी भामिनिभाल।। ७१८ ॥ बँदी भामिनिभाल लगी अति सोभा पैहै । पाँय महाबर रहै नैन काजर सरसैहै ॥ गुंजा हू नासा चढ़ि सुकबिन कैहै घायल । पाय लगी ही कायल है जनु झनकति पायल ॥ ८४४ ॥ बाम तमासे कर रही बिवस बारुनी सेइ । । झुकति हँसति हँसि हँसि झुकति झुकि झुकि हँसि हँसि देइ७१९ झुकि झुकि हँस हँसि देइ तकति एकटकी लगायें । बोलत रुकि रुकि अनमिलबचनन क दुहरायें ॥ सरकति सारी लखति डीठि सँग अरुन वि- कासे । सुकवि कपोलन मुलकि करत है बाम तमासे ॥ ८४५ ॥
- भौ यह ऐसो ई समै जहाँ सुखद दुख देत ।
- .. चैतचाँद की चाँदनी डारति किये अचेत ॥ ७२० ॥
डारति किये अचेत दहति जनु दह दुवागी । सुरिभ समीर झपट्टन स । औरो जनु जागी ॥ किते मूरछित परे किते जनु हाय हाय कह । पिय बियोग मैं सुकवि समै सब औरै भो यह ॥ ८४६ ॥
- जदपि नाहिँ नाहीं नहीं बदन लगी जक जाति । ।
तदपि भौंह हाँसी भरि नुहाँसी यै ठहरारि ॥ ७२१ ॥ हाँसी यै ठहराति करै किन नाहीं नाहीं । लसत रोमञ्चन कञ्चन अँग ।
- झटके हू चाँहीं ॥ मोरे हू मुख होत सामुहँ डीठ रस झपी । मन न रुखाई ।
- गहत सुकवि ठानत है जदपी ॥ ६४७ ॥
| यह दोहा देवकीनन्दन टीका में नहीं है। :: :: :.