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२१५
बिहारी बिहार ।

२१५ = = विहाराविहार।।

  • रुख रूखे मिस रोखमुख कहति रुखहै वैन ।

रूखे कैसे होत ये नेहचीकने नैन ।। ७२२ ॥ नेहचीकने नैन होइ हैं कैसें रूखे । रससिँगार स सने सदा पियरसन-

  • भूखे ।। किती भह सतराय किती किन फेरै तु मुख । सुकवि त छविछाके

ॐ दृग को बदले नहिँ रुख ।। =४८ ॥ | *लग्यो समन हैहै सु फल आतपरोस निवार। बारी बारी अपनी साँचे सुहृदतावार ॥ ७२३ ॥ सचिरहदतावार वाय जनि रोकु उछाहू । सङ्काकण्टक काटु पल्लवित राखि उमाहू ।। घर हॉइन की घेर घास जिय में न दै जमन । सुकवि सरस में रहु रूखी होइ न हैं लग्यो सुमन ॥ ८४६ ॥ ललनचलन सुनि चुप रही बोली आपन ईठ ।। राख्यो गहि गर्दै गरौ मनौ गलगली दीठ ।। ७२४ ॥ मनों गलगली दीठ ललकि गर स लपटानी । कसि के गहिरे ऍचि लियो दिग पुनि पिय आनी ॥ आँसुन की वरपा कै चोरे डगर जनु जलन । में सुकधि पलटि टाढो है भूल्यो चलन है ललन ॥ ८५० ।। 4.सकै सताय न तम विरह निसिदिन सरस सनेह ।। वहे सह लागी दृगनि दीपसिखा सी देह ॥ ७२८॥ दीप सिखा सी देह दमक दमकति अनिवारी। बदनचन्द्रचन्द्रिका चिलक उर में उँजियारी । भुपनमोतीनखतवमक अज हूँ जिय जाय न। एते हुसुकवि में प्रकास विरह तम सके सतायन ।। ८५१ । • ३५ दर ॐ न दो र र दैनन्दन टीका ३ नहो । ' ए ६ अरनिश, शुर:मतिका ६र देयकीनन्द टोका में नहीं है ।। | । । --- - -- -