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बिहारी बिहार ।

विहाराविहार ।। नैन किरकिरी जो परें कर माँजत जिय जाय ।। देखह प्रेमभाव रसमरत नैन समाय ।। ७३० ।। - मुरत नैन समाव धुपे केहूँ नहिं धायें ! कोटि उपायन करो हटै नहिँ जागे । सायें । जाई ससाई ताही के दिन बढ़ तिरमिरी । सुकबि भली यह भली में लगे नहिँ नेन किरकिरी ॥ ६५५ ॥ परी परी में चदि अटा निपट बढि परी जोति ।। फिरती दीठ दई छिनक दीठ विचल चल होति ॥ ७३१ । । दीठ विचल चन होति लखी जब सों वह प्यारी । झमकावत झविया । रु झमावत झननी चारी ॥ तेह ध्यान में अरी रही दृग भरी घरी लों । सुकवि छरी सी जव सौं वह लखि परी परी ल ॥ ८५.६ ॥ वधूअधर की मधुरता वरनत मधु न तुलाइ । लिखत लिखक के हाथ की क्रिलिक* ऊख है जाइ ।। ७३२॥ किलक ऊख है जाइ मनी हू होत सुधासी । खाजा के परतन की सी छवि

  • पत्र प्रकासी ॥ लववन की वा. हु तहाँ चीनी सी हरकी । सुकविं करे किमि
  • कविता मधुर वधर की ।। ८५७ ॥

मारे काह मीत के भलि गये सब जेब । । आप बहू असा कीं तसवी कहें कितेव ।। ७३३ ।। क किले छरी कहैं कहूँ पग्यो दुपट्टा । कहूँ टोपी कहुँ कलम कहूँ पट्टी । कई पट्टा ।। चपराये से फिरत र मुख फच विथुरारे। सुकवि मरदई विसरि गये । के मार ।। ६५८ ॥ | * * * नम: । ५ । । । । । १११११११११११}} }}}} }}}} } }}} }} }