पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/३१

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भूमिका ।। 4 विभूति से धूसरित हो भूत प्रेतों में तन्मय हो मत्तावस्था में मुग्ध हो गये, तब इनके पूर्व निदेशानुसार

  • चारों ओर से भयानक आग लगादी गई सो सब चट पटा के समाप्त हो गये । यी सम्भवतः सं. १६१०

में ७६ वर्ष के वय में केशव का इतिहास समाप्त हुआ ॥ । इसके और ५० वर्ष के अनन्तर बिहारी ने सत्सई बनाई । कदाचित् कथमपि यह मान भी ले कि बिहारी ने ६० वर्ष के बूढ़े हो के. यह ग्रन्थ बनाया तथापि बिहारी के अन्य से, कैसी गहरी वैष्णवता झलकती है और ग्रन्थ के आरम्भ ही में,ौराधा (मैरी भव) और श्रीकृष्ण (सीस गु०) के बर्णन से उनका कैसा अनन्य भाव झलकता है। तिस पर भी उनका शुक्लादि मास मान के तिथिवार लिखना उनकी वैष्णवता को सान्प्रदायिक रौति से भी यकी किये देता है। ऐसे महापुरुष का केशव ऐसे बाममार्गी का पुत्र होना खटकता है। केशव ७६ के बढ़े हुए तव उनका पुत्र ४० वर्ष का तो होगा और जिसे ४० वर्ष तक बाम संस्कार लगा वह कब सान्प्रदायिक वैष्णव हो सकता है. ॥ ..... यदि बिहारी को इनी केशव के पुत्र ठहराने को ‘हा केशव बूढ़े हो गये तब बिहारी, जनसे और विहारी भी छड़े हो गये तब उनने ग्रन्थ बनाया तथा विहारौ के भी छडावस्था ही में सन्तान हुआ है। यों कहा जाय तो क्लिष्ट कल्पना ही होगी. और बिहारी के चौबे होने के विषय में जो उनके गीतिया से निर्णय करके गोत्रप्रवर पर्यन्त दिया गया यह बाधित नहीं हो सकता ॥ ...। वन्दावननिवासी श्रीराधाचरण गोस्वामी जी के किसी समय भारतेन्दु नामक मासिकपत्र को सम्पादन करते थे ।. उसौ. कै २०:१.८६. के पुस्तक.३ अङ्क १.० में उनने.बिहारी को भाट कहा है। वह लेख यों है,-- . . . . . . . . . . : ३ कृष्ण कवि का बिहारी का पुत्र होना भी प्रसिद्ध है। वे सवाई जयसिंह के समय में थे और उ नने ( सं० १७५६ से १८०० तक ) राज्य किया। यदि विहारी के ४० के वय में इनका जन्म मानें तो भी क्या कृष्ण ने १०० वर्ष के अथवा इससे भी अधिक बय में ग्रन्य बनाया !! के गोस्वामी जी हिन्दी गद्य के प्रसिद्ध लेखक हैं। सं० १९४२ में बङ्गदेश में श्रीकृष्ण चैतन्य महा प्रभु का अवतार हुआ । जिनने इस कलियुग में हरिनाम की सुधातरङ्गिणी लहलहा दी। इनके शिष्य गोपालभट्ट गोस्वामी, तच्छिष्य गोपीनाथ राय गोस्वामी, तच्छिष्य दामोदरदास गोस्वामी, पुत्र परम्परा में इनसे दशम पुरुष में श्रीचन्दाबन के रत्न स्वरूप श्री गल्लू. जी महाराज गोखामौ हुए। उनके पुत्र शौ राधाचरण गोस्वामी विद्यमान हैं। इनने कृपाकर भारतेन्दु की पुस्तिका मेरे पास भेज दी है। और पूछने से लिखा है कि "आज तक बिहारी के विषय में मेरा वही सिद्धान्त है । कुछ भी हेर फेर नहीं हुआ है। इनने निज जीवनौ स्वयं प्रकाशित की है जो // में इनी के समीप मिल सकती है । इस में सूचना के लिये मैं इनका अत्यन्त धन्यवादी हूं ॥