पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/३२

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१५ विहारी के वंश का विवाद। | "बिहारी कवि, ब्रजभाषा को ससुराल मथुरापुरी के वासी थे। इसी से इनकी भाषा:मधुर से भी मधुरतर है । यह जाति के राय थे, और इनके पिता का नाम केशवराय था । जैसा उनी के दोहे से । स्पष्ट है ।। “जनम लियो मथुरा नगर सुवस वसे ब्रज आय । मेरे हरो कलेस सव केसव केसवराय छ । । इसमें कैश्यवराय पंद से यही बोध होता है कि उनके पिता राय थे । यदि कैशवराय शय्ट्र से मथुरा के प्रधान देवता केशव देव जी का अभिप्राय होता तो देव शब्द होता न कि राय । यदि कोई पाठान्तर १

  • ० ( लालचन्द्रिका का यही मत है) जनम लियो हिज कुल विषै” से बिहारी को ब्राह्मण मानें तो

सन्देहास्पद हैं, क्योंकि ब्राह्मण कुल के लिये केवल 'डिज' शब्द अनर्ह है : ‘जिरीज' ‘भूसुर’ ‘भूमिसुर’ ६ ‘विप्र' आदि लिखते $ ।” इत्यादि ।। परन्तु यह कोई प्रवल युक्ति नहीं विदित होती कि बिहारी के चौबे होने के प्रमाणों की बाधिका हौ। जिस समय बिहारी के विषय में बहुत कुछ विदित न घा उस समय इतना लिखना भी प्रशंसनीय है।

  • बिहारी स्थानान्तर में भगवान को ‘हरिराय' भी कहते हैं। तुलसीदासजी ने रामराय, रघुराय,
  • मुनिराय दिपदों के प्रयोग किये हैं । वङ्ग देश में अभी तक कई ब्राह्मणकुल भी रायवंश कहलाते हैं,

( जैसे उसैशचन्द्रराय धीरोदचन्द्रराय ) मैनपुरी के चौवे भी अनेक अपने नाम के साथ रायपंद रखते

  • हैं। जैसे मैनपुरी के प्रसिद्ध चौवे मुचुकुन्दराय थे, उनके पुत्र मथुराप्रसाद चौवे अभी तक भागलपुर में
  • महायजी के यहां विद्यमान हैं। इनका विशेष वृत्त बिहारी के जीवनचरित की टिप्पणी में लिखा
  • गया है। इन दिनों सभी जाति में कुछ पुरुष राय पद से अङ्कित सिलेंगे। ऐसे अदृढमूल रायपद पर
  • अमरचन्द्रिका लालचन्द्रिका, हरिप्रकाश आदि किसी प्रामाणिक टीकाकार ने ऐसा पाठ नहीं
  1. माना है। प्रत्युत “प्रगट भये दिजराज कुल” एसी पाठ है ॥
  • • गोस्वामी जी निज पाठ को किस प्राचीन टीकाकार का सम्मत मानते हैं ? मेरे पास इस समय

को बहुत पुरानी लिखी नाना टीकाओं की पोधियां धरी हैं पर गोस्वामी जी वाला पाठ कहीं नहीं मिलता है न केवल 'हिज' केवल ब्रामण के लिये भी मिलता है जैसे -तुलसी क़तरामायण बालकाण्ड “मिले में न कहु सुभट रन गाटे । हिज देवता घर ही के वाढ़ ।” • “निपट हि हिज करि जानेसि भौहो ।' इत्यादि । में इससे विदित होता है कि यदि हिजराज पाठ सिद्ध कर दिया जाय तो गोवामी जी की इन ॥ । ड वा मानने में कोई आपत्ति नहीं है । परन्तु मैं इिजराज पाठ हो यथार्थ नियय किये बैठा हूं। ने र जो इस विषय में मुझ से पके उसके आगे सिद्ध करने को प्रस्तुत हूं । अनेक प्राचीन लिपियों में । हो पाठ ६ ।