पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/३५६

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संक्षिप्त निजवृतान्त ।

संक्षिप्त निजतान्त । इनने भी मेरी कविता सुन वही आशङ्का की कि इस छोटे वय में ऐसी अच्छी कविता का होना बहुत कठिन है सो विशेष सम्भव है कि पिता की सहायता से यह कविता बनौ हो। इस सन्देह की निवृत्ति के लिये उनने एक दिन दूसरी समस्या दी और कहा कि मेरे सामने पूरी करो ।। समस्या "मू दि गई अँखै तव लाखें” कौन काम की ।” । इस समय सेवककवि, नारायणकवि, हनुमानकवि, दिजकविमन्नालाल और मेरे पूज्य पिता पंडित । दुर्गादत्त जी उपस्थित थे। मैंने तत्क्षण कवित्त बनाया सो यह है-- चमकि चमाचम रहे हैं मनिगन चास सोहत चहँसँ धूम धाम धन धाम की । फूल फुलवारी फल फैलि के फवे हैं तऊ छवि छटकौली यह नाहिन अराम की ॥ । काया हाड़ चाम की लै राम की विहारी सुधि जाम फी को जाने वात करत हराम की अस्वादत्त भा” अभिला क्यों करत झूठ मुँदि गई अँखें तव लाखें कौन काम कौ ॥ | इसके पूर्व मैंने सभा में कभी कविता नहीं की थी, यह प्रथमही कविता हुई और झाजी ने पारितोषिक सर्वाङ्ग के दिव्य वस्त्र तथा प्रशंसा पत्र देकर गुणग्राहिता प्रगट की। गुणियों के समाज में है। इसी समय मेरा नाम फैला ।। | इसी छोटे वय में पिताजी ने मुझे कथा कहना आरम्म कराया था । प्रति एकादशी की कथा घर में मैं कह लेता था। मेरी माता भगिनी आदि सुनती थीं और अनन्त हरितालिका आदि सबै कथा

  • समय ३ पर अल्पपरियम से अभ्यास कर मैं कह लेता था इस कारण मेरी धृष्टता बढ़ती जाती थी,
  • सभाक्षोभ हटता जाता था वाक्चातुरी आती जाती थी और व्रज भाषा के अनर्गल भाषण का पूरा

अभ्यास होता जाता था ॥ पिताजी प्रसङ्ग २ पर दोहे इतिहास लोक आदि की घटना भी वैठा देते थे और संक्षेप विस्तार सरसता आदि के कौशल बतलाते जाते थे । | ग्यारह वर्ष के वय में मैं अमरकोप, रूपावली और कुछ काव्य समाप्त कर पण्डित कृष्णदत्तजी से । लघुकौमुदी पढ़ने लगा और थीमद्भागवत दशमस्कन्ध पिताजी से पढ़ता था । पिताजी के पास जितने विद्यार्थी जितने २ पाठ पढ़ते उन सबको यथा शक्ति सुनता था इससे और भी योग्यता वढ़ती जाती थी। | मुं• १८२६ में ग्वाल कवि के शिष्य खन्न कवि काशी जीमे आये और श्रीराधारमणजी के मन्दिर में है।

  • हैंझी के उत्सव में अनेक कविजन के सामने उनने भारतेन्ट वाचू इरिचन्द्र को यह समस्या दौ--

समस्या “सूरज देखि सकें नहिं बुधू ।” . . . | इसे सुन थोड़ी देर वा हरियन्ट सुप रहे और टो तीन देर लेग्वनी बोड़ कहा कि कोई उत्तम क- । दि इस पर नहीं हो सकती । इस पर वुड्ग कदि कुछ मुसकिरा कर इधर उधर देखने लगे तव । । मेरे पूज्य पिता पण्डित दुर्गादत्तजी ने कहा कि “आपको इनी समस्या से अाग्रह हो तो यह इम हैं।