पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/३५७

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संक्षिप्त निजवृतान्त ।

| संक्षिप्त निजतान्त । । लड़के को दीजिये और बाबू साहेब को दूसरो समस्या दीजियेगा । यह कह कर मेरे पिता जी ने हैं। मेरी ओर संकेत किया । बाबू हरिश्चन्द्र लुझे इतना तो जानते थे कि मुझे सैंकड़ों कवित्त कंठ थे और में कुछ भाषा कविता भी करता था परन्तु सभा में तत्क्षण कविता के सामर्थ्य के विषय में अपरिचयी थे । स्रोत्साह उनने मुझे पत्र लेखनौ आदि दिया, सब सतर्क हो देखने लगे ॥ मैंने कविता रची सो यह है । गोद लिये हरि को नँदराय जू सुश्रा हायो कह्यो उन बुधू । | तोतर बैन सुनो चित चैन ओ झाग. कहायो कह्यो तब कुग्घू ॥ अस्विकादत्त अनन्दित हूँ मुनि बाघ कहा” ह्यो उन बुग्घू । देखि सकें नहि घातक सो जिमि सूरज देखि सकै नहि घुग्घू ॥ | साधु बाद से मन्दिर गूंज उठा और बाबू हरिश्चन्द्रजी से स्नेहानुग्रह इसी क्षण से बढ़ा । घर-आने पर पिताजी ने बहुत शौर्वाद दिये तब मैंने यही सवैया भेट कर प्रणाम किया और

  • कहा कि यह कविता आप कौ है आपही के शिक्षा प्रभाव से प्रादुर्भूत है सो आपही के अर्पण है (उनने

अङ्गीकार किया। । सं० १९२७ में बावृहरिश्चन्द्रजी ने.कवितावर्जिनौसभा का स्थापन किया। प्रथमः बार यही समस्या थी कि "चिरजीवी रहो विकटोरियारानी” । यह भी आज्ञा थी कि प्रातःकाल, का वर्णन हो । इसपर मैंने भी पूर्ति की, सो दैवातः सब से बिल २ क्षण हुई क्योंकि विकटोरिया कटोरिया का यमक किसी में न था । इस पूर्ति सहित बाबू हरिश्चन्द्रजी ने इसके विषय में निज प्रसिद्ध पत्र कविवचनसुधा में यों लिखाः ।। कविवचनसुधा जि० २ कार्तिक कृष्ण ३० सं०. १८२७” वाराणसौ ६ नं. ४ ); अम्बिकादत्त गौड़ * } आनँद ते परजा विकसे सब कल से कोससिौ. हरज्ञानी । सवतिनी चिरि सम चारहुँचीर हैं बोलि रही स्मृदु बानी ॥ · । भोरप्रताप सो जाको प्रताप लखें इमि अम्बिकादत्त बखानी ।। परी अनी की कटोरिया सी चिरजीवी रहे बिकटोरिया रानी ॥ . ईश्वर की कृपा से कविता में तो मेरी प्रसिद्धि हो ही गई थी परन्तु क्रमशः कथा कहने में भी,

  • प्रसिद्धि हो चली । पहले घर में कथा में पका हुआ फिर काशी के उस समय के सुप्रसिद्ध गोलघर वाले

राधारमण जी के मन्दिर में कथा कही । ( इत्यादि ) । ० इस विलक्षण वालक दावि की वृद्धि भी विलक्षणही है, और अवस्था इसकी जैवलः बारह वर्ष ।

  • की है। हम इसके और ससाचार भी लिखेंगे ॥ क० १.०. सुधा० ॥ ,.