पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/३६२

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संक्षिप्त निजवृतान्त ।

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4444444444444444441 | संक्षिप्त निंजल्लत्तान् । ग्रौर निज जन्मस्थान जयपुर. का दर्शन किया। इस समयं तर्क विहार में मैं अनेक धर्मसभाओं का स्थापन कर चुका था सो हरिहर क्षेत्र में उनकी संग्मिलन की महासभा स्थापित कr : इम् स य भागलपुर में प्राइवेट कालिज होने से भागलपुर जिला स्कूल क्षतिग्रस्त हो रही थीं। इन्सपैठर ने मुझे वहां भेज दिया ( १८४४ } वहाँ अार्यसमाजी लोग घुसना चाहते थे सो किंड़बड़ाये * श्रीर ईश्वरानन्दस्वामी को बुला व्याख्यान कराया। मैंने भी सनातनधर्मपोषण पर 'दो चार व्याख्याने ५ किये । फिर अनेक अर्यसमाजी आचार्य बुलाये गयें । कर्नगढ़ पर बड़े समारोह को संभायें हुई। सनातन धर्म का विजय हुआ । इस स्मरण पर विजयिनी धर्म सभा का कार्य गढ़ पंर' स्थापन हुआ तथा नगर में विजय सभा प्रभृति और भी अनेक सभा स्थापित हुई । ( सनातनधर्म की जंय नामक * पोधी बांकीपुर सुनोति संचारिश की ओर से छपी ) इसी वर्ष छपरे में आर्यसमाजियों का विशेष धूम । हल्ला हुा । में बुलाया गया और भी अनेक विद्वान् एक्रवित थे । अनेक व्याख्यान हुए दूसरे दूसरे * नगरी से कितने श्रोता उपस्थित हुए । सनातन धर्म का 'विजय हुअा।। । . . .: : :: : | इमो समय पोप साहेव के इारा मैंने बिहारसंस्कृतसंजीवन स्थापित किया जिसके कार्य सम्पादक * पहले तो यहां के ऐसिना इंसपेक़र मिसृर टेरी थे फिर में स्वयं कार्य सम्पादक हुआ और बिहार में २३ संस्कृत की उन्नति होने लगी । इस समय तक सौ से अधिक छात्र विहार संस्कृत सीवन से दो दो चार २ वर्ष तक मासिक पा पढ़ कर डिपंत हुए हैं। , , . . . . . . . . . . * सं० १९४५ में सोमवत नाटक खङ्ग बिलास में छप कर तयार हुआ महाराज मिथिलेश के अर्पित हुा । महाराज बहादुर ने भी अपनी योग्यतानुसार मेरा सम्मान किया। इस समय जिता मैमनसिंह रामगोपालपुर के जमीन्दार बाबू योगीन्द्रनाथ चौधरी ने मुझे बुलाया रामगोपन्त पुर में पण्डित मंडली में एकदिन संस्कृत में और एक दिन बहुभाषा में भी मुझे व्याख्या करना पड़ा। दकिप्रकाश प्रभृति पत्रों में इसका इतिहत्त कृपा । सन्त में गदा र उपन्यास ) शिवराजविजय बनाने में मैंने हाथ लगायाः । यच्च इस समय कई वर्ष से इना टु अ तयार हैं, परन्तु इस समय कोई गुणग्राही एसा नही देख पड़ताओ दो चार माहस रुपये लगाकर प्रकाशित करें । महाराज श्रुअर ने पहिले इस भार को स्वीकार किया. फिर आजकल करते परलोक मिधारे ॥ अव कई वर्ष से कांकरोलीनरेश गोस्वामी श्री १०८ बालकृष्णलाल मराज इसे कुपवाने की प्रतिज्ञा कर रहे हैं। कदाचित् ये पूरी करें । सनातनधर्म महामण्डन दिल्ली से बिहारभूषण पद के साथ सोने का तगम मुझे मिला या नई राजाधिराज मिविलेजर के व्यय में भिन्नु ) ।। सं० १८४८ मैं बिहारीविहार ( विहारी के दोहीं पर कुतिया का ग्रन्थ ) अई के परिश्रम * से मैंने बनाकर ममाप्त किया पर किसी ने यह पुस्तक हस्तलिखित ही चुरा लिया।