पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/३६९

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कबित्त ।। सरस विहारी दोहा ताकी कुण्डन्तिया मढ़ौ बढि नहि देख जगजाहिर सुनामी नर। शासन के पंडित हैं सर्व गुन मंडित हैं है है.उपदेस लग जौवन करत तर ।। कई बलदेव बिद्यादान निमि. दिन देत सुतन समेत याको शंकर अनन्द कर। परम उदार सरदार सुकुमार अति सुन्दर सुशील अंबादत्त व्यास बिप्रबर ॥ सोरठा- कुण्डलिया सुभ कौन काव्य बिहारीसतसई : : :: :: .. । अम्बादत्त प्रवीन रची सरसता सौगुनौ । .......... दोहा--- सरस बिहारी दोहरा कहत सुनत कवि लोग ।।. . अव कुराडल या को श्रवन भूषन धारन जोग ॥::::::::::: रतनपुरा छपरा निवासी बाबू बिहारीसिंह रसराज, कृत:::: . कबित्त । विहारीविहार कों विलोकत बिहारी बैस रहत कलेस ना सुजन मन मौज है । काव्य गुन सरस भरे हैं जामें कुटि केटि भांव भेद उज्जल प्रसाद गुन औज है ॥ नायिका के चित्र इंन अँखिन के सोहें फिरें खीचे जनु सदन मुसौअर के चीज है । जगत प्रसिद्ध व्यास भारतरतने बेस ताकी कविता को सुनि नाचत मनौज है ॥ . एक एक दोहा पर कुंडल अनेक रचे पृथक पृथक भाव भेद दरसायो है। सुकवि रसौले की अनोखी 'कविता भै रौझि कौन सा सुजान नाहिं मन हरषायों है। प्रघको विहारी ना बिहारी छोड़ी कोंऊ ठौर रचि के रंगीन दोहा रंग सरसावो है । तामें व्याम जोड़ तोड़ कांट सीट बँधी वैस कीनी स्वरादग्यूब जोड़ ना दिखायो है कविता बिहारी की प्रसिद्ध जग जाहिर है दोहा के समान दोहा भयो है न होनहार ! कैते ग्रन्थकार कीन्ही टीका-पर: टौका बेस टौका सिर टीका भईरससों भरी अपार ॥ सुकवि रसीले ब्याम परम निपुनती सों ललित कुंडलिया रची सँच में सुढार ढार ।

  • भाव भेद पूरि रीति नीति अलंकार धारिः रस दरसायो है, अनोखे ढंग बार बार ॥

दरभंगरनिवासी श्रीविश्वनाथ झा कवि कृत।

  • सुकवि बिहारीलाल जू की सप्तशतिको के परम गंभीर भाव चढ़तन दीठी है।

ॐ..