पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/३७२

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सकल भाति स पूरन करि धरि दीनौ हाथनं हाथै ॥ भारतेन्दु वावु हरिइँद की आवत देखन माहीं । पै कुंडलिया सतसैया के सव दोहन पर नाहीं ॥ पटना हरमन्दिर महन्थबर श्री सुमेरसिँहजी नै । . विरची कछु कुंडलिया इनके पै मुद्रन नहिँ कौन ॥ यामें चरित बिहारी जू के सुकवि व्यास जू भाषे । । टीकाकारहु के चरित्र पुनि खोज ढूंढ़ि कै राखे । अरु वह दोहे बिहिँ बहु कवि निज ग्रन्थन में तजि दौने । सोऊ सव टिप्पन के कै या ग्रन्थि माहिँ लिख लौने । जाते इनके भले परिश्रम आवत देखन माहीं । धन्य धन्य पुनि धन्य धन्य विनु कहे जात रहि नाहीं ॥ मँगते हम कर जोरि राम सों रहैं सुकवि नित सुखिया । भारतरत्न भव्य भाषा के गद्य पद्य के मुखिया ॥ * यह वर ग्रन्थ समाज कबिन के बहु विधि दर पावै । . सुकवि व्यास अम्बिकादत्त को सुजस सुभग जग छावै ।। .. ३ में .. . रसिकं. कवि सभा.कानपुर। ... .. | ऐसा कौन अभागा काष्यप्रेमी होगा जिसने विहारीलाल के समय चटकीले दोहे न पड़े हीं और में पढ़ कर भी मोहित न हुआ हो। परन्तु ऐसे रसीले अन्य का गूढ़ तात्पर्यय हर एक मनुष्य को समझ में । साधारणतः नहीं आता था इस कारण हमारे हिन्दीहितैषी व्यासजी ने दोहों पर कुण्डलिया करके "सोने में सुगन्ध कर दी” अर्थात् एक ती विहारी के दोहे तिसपर भी एक प्रसिद्ध कवि की कविता में । टीका, क्यों न मन लुभाने वाली हो । अतः हमारी सभा व्यास जी को हृदय से शतशः धन्यवाद देती में है कि जिन्होंने वहुत बड़ा परियम करके ऐसे उपयोगी अन्य को लिखकर भाषा का गौरव बढ़ाया ।। कुण्डलिया ।. .. । रच विहारी लाल वहु, दोहा चित्र विचित्र । जिनके अवलोकन किये, मन भो में परम पवित्र ।। मन भो परम पवित्र काव्य को एक वसौला । “रसिक' हिये वसिगयो