पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/३७४

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श्री पण्डित छोटेलालजी पटना मिरचाई गंज ।। श्रीअम्बिकादत्त व्यासजी ने श्री विहारी सतसई के सात सै दोहों के समस्त ग्रन्थ को कुण्डिया बनाई किसी ने आज तक न किया ऐसा विचित्र काय जिसको पढ़ने में एक काल घोड़ी बाइँ स्तुति करने की सामर्थ न रही तो एक शेर याद आया कि--- आईना के हाथ में तू वार बार देख । ए ले तू अपने हुस्न की पौ बहार देख । पं० गंगाप्रसाद अवस्थी मास्टर उपसभापति रसिक कबि सभा (कानपुर ) . कुण्डलिया ।। उमग्यो रस अतिही मधुर गूढ़ शब्द रमनीक । काब्य रसौली रसभरो लगत न । कतह फीक ॥ लगत न कतई फीक हृदय उत्साह बढ़ावै । पढ़त न जिथ अलसात सुकवि जन के मन भावै ॥ कह “गंगापरसाद’’हीय हरि भक्ति हँग हँग्यो । देखि ( विहारविहार ) परम उर आनँद उमग्यो ॥ १ ॥ काशी निवासी कविवर बाबू रामकृष्ण वर्मा ( वीर ) कविकृत ।। दोहा । सतसैया के दोहरा जगजाहिर सुखसार । व्यासअम्बिकादत्त तहँ कुण्डल किये अपार ॥ १ ॥ कुराड लिया को ग्रन्थ कोउ पूरी मिले न अाज । वाद अढ़ाई सौ वरस व्यास कियी सो काज ॥ २ ॥ जोड़ परत जान्चो नहीं रस एकै दरसाय । उक्ति जुक्ति मय चौगुनी सौरान सुख सरसाय ॥३॥ एती टीका आजु लौं जानी कोऊ नाहिं जेती टीका के चरित लिख भूमिका मांहिं ॥४॥ जीवनचरितन लिन मैं औते कौने खोज । । कैते ग्रन्थन देखि कै लेख लिख भरि ओज ॥ ५ ॥ सतसैया की पूर्ति की तिथि पै हो सन्देश । याको उत्तर अाजुलों कोउ न कियो अझै ॥६॥