पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/३७७

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। ( १० ) ( काशौ निवासी बाबू राधाकृष्णदास लिखित ) “बिहारीबिहार” भाषाकविकुल मुकुटमणि, भाषा कविता के अगाध सागर, “घट नहि सिन्धु

  • समाय' की कहावत को बिपरीत करनेवाले श्री ब्रुन्दाबनबिहारी के प्रेमाधिकारी
  • विहारी, का नाम कौन ऐसा हिन्दी का जाननेवाला है जिसके हृदय में बिहार न
  • करता होगा ! कौन ऐसा भावाप्रेमौ होगा जिसके हृदय को इनकी कविता ने

में मोहित न कर लिया होगा ! उनके विषय में कुछ कह ना केवल “छोटे मंह बडी

  • बात कहना है। इस अनूठे कवि के आश्रय पर कितने ही महान कवियों ने अपनी

में वृद्धि का चमत्कार दिखाया है, इनके दोहों पर कितनों ही ने टीका, कितनों ही • ने कंग्डलिया, कितनों ही नै कबित्त, कितनों ही नै भाषान्तर वार के गौरव पाया

  1. है, एतद्देशीय ही नहीं वरन विदेशीय विद्वानों ने भी इनके अमूल्य कवितारत्न को

अपने हृदय सम्पुट में आदरपूर्वक स्थान दिया है ।। इनके गूढ़ाशय भावों को स्पष्ट करने तथा अपनी ओर से और भी उन्हें अल- । क्वत करने के लिये कितने ही महान् कवियों ने कुण्डलिया बनाई परन्तु खेद का

  • विषय है कि पूरी सतसई पर कुण्डलिया किसी को भी लोगों को प्राप्य नहीं हैं,
  • इस अभावको दूर करने के लिये हमारे मित्र साहित्याचार्य पशिडत अम्बिकादत्तव्यास
  • जी ससस्त भाषा प्रेमियों के धन्यवादाह हैं। परन्तु केवल इतना ही करने के लिये

हम उन्हें धन्यबाद नहीं देते वरच्च उनका ऐतिहासिक अनुसन्धान विशेष प्रशंसनीय और अादरणीय है ।। | इस देश के लोगों में इतिहास पर अधिक रुचि न होने के कारण बडी ही हनि हुई है, इतने थोड़े काल के हुए बिहारी कवि का ठीक वृत्तान्त नहीं मिलता । याह कैसे खेद की बात है। व्यास जी ने इस ओर विशेष ध्यान देकर बड़ा उपकार किया है और दूसरों को उदाहरगा दिखलाया है। कवि विहारौ तथा उसके टीका- का की खोज में जैसा परिश्रम इन्होंने किया है और सफलता प्राप्त की है वैसी

  • था ३. तक मेरी समझ में कदाचित ही किसी को प्राप्त हुई हो । विहारी सतसई

३] की समाप्ति की तिथि आदि के विषय में चिरकाल से बड़े झगडे चले आते थे पर है