पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/३७९

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  • वियों का पता लगा के उनको नामावली दी है। सारो भूमिका ऐतिहासिक विषयों से भरी है जिसके

में पढ़ने में कुण्डलियाओं से कम आनन्ट नहीं होता। धन्य हैं महाराजाधिराज कोशलेश्वर जिनके आश्रय से ऐसा अपूर्व ग्रन्धरत्न प्रगट हुअा।।

  • अतियारपुर निवासी अभिनवकवि बाबू ब्रजनन्दन सहाय कृत।

। रसिकविनोद अक कविन प्रसाद का ज कोविद महान कहँ अति भुवदाई है । ब्रज जू सुदोहरे विहारी के अभूषित कै कुराड ली मडकदार सुकवि बनाई है ॥

  • काय के जाने की अनुपम छवि एक सिरी कबि अम्बादत्तव्यास दिखाई है।

| दोरो कविजन जयमाल पहिरो इन्हें चहवां विहारी के बिहार की बधाई है ॥ दोहा विहारी के मूत्र समान सो अर्ध औ शब्द के बँटे सुधार हैं । भाव के मोतिन सों ज्यों गुँथे हज धार के धार अधार सिँगार हैं । भाष्य से कुण्डल तापै रचे सुक बी र स साने विवेक अगर हैं । देख्यो सुन्यो ने कहूँ कबहूँ प्रगट्यो जग जैसो बिहारी बिहार हैं । श्री व्यास रामशङ्करशम्र्स लिखित ।। श्रीयुत परिडत अम्बिकादत्त व्यास जी साहित्याचाय का बनाया हुआ विहारी-

  • विहार मैंने देखा, अतिप्रसन्न हु । कुण्डलियां ललित, सरस, और भाव पूर्ण हैं।

य उपोद्धात में सप्तशती के विषय में जो कुछ लिखा गया है उससे व्यासजी की वहु- । ज्ञता सुचित होती है और उसमें अधिकांश ऐसे विजय हैं जो आजतक लोगों को

  • विदित न थे। दोहों की अनुक्रमणिका ग़ौर उनके क्रम का विवरण जो पुस्तक के अन्त ।

4 में दिया गया हैं लोगों को उस से बहुत सुविधा होगा । व्यासजी ऐसे प्रसिद्ध पुरुष

  • के विषय में विशिष्ट लि बढ़ने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि उनकी योग्यता से प्रायः
  • देशमात्र परिचित है । इम स्थान पर हस महामान्य आदरणीय श्रीमन्महाराज

अयोध्यानरेश की गुण-ग्राहकता को विशेष सराहना करते हैं जो श्रीमान् ने व्यास

  • जी के परिश्रम और गंगा पर रीझ कर विहारी बिहार के प्रादुर्भाव में पूरी सहायता,

को । उदारता के अतिरिक्त महाराज की अपूर्व रसिकता और भाषाकविता का

  • प्रम इससे स्पष्ट है ।

| गङ्गापूर ।। श्रीव्यास रामशरशम्र्मा । । _ १८५-८)