पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बिहारीसत्सई की व्याख्याओं का संक्षिप्त निरुपण । इस समय तक ये अपने छापेखाने में इन ग्रन्यों कुपवा चुके थे,---, (१) सिंहासनबत्तीभौ---( इस की चर्चा ऊपर हो चुकी है इसमें विक्रम के सिंहासन की पुत्तलियों की ३१ कहानियां हैं ) ।

  • (२) माधवविलास--- रघुराज गुजराती ने भी इसी नाम का एक नाटक बनाया था )।

(१) सभाधितास--( यह पुस्तक बहुत प्रसिद्ध है। इसमें नानाप्रकार की कविताओं का संग्रह है। इसी की छाया पर राजा शिवप्रसाद के गुटका आदि अनेक संग्रह बने हैं ) ।। । (४) प्रेमसागर--( ऐसा कौन सा संग्रह होगा जिसमें प्रेमसागर का थोड़ा अंश न हो । सन् १५६७, संवत् । ६३१ में चतुर्भुज दास ने ब्रजभाषा में दोहा चौपाई में भागवत दशमस्कन्ध का अनुवाद किया था उसी पर से लल्लूलाल ने यह ग्रन्य किया । अतएव यह यथार्थ में थीमद्भागवत का अनुवाद नहीं है । यह ग्रंघ सन् १८०८ तक तो नहीं छपा था परन्तु अई तक तो नाना प्रेस में नानावार छप चुका है ॥ (५) राजनीति- यह हितोपदेश का व्रजभाषा में अनुवाद है । यह ग्रन्थ इनने सं• १८६६ सन् १८१२ में बनाया था । (६) भाषा कायदा-हिन्दी भाषा को किरण । लोग कहते हैं कि इसकौ । कापो बङ्गाल एशि. • याटिक सोसायटी के पुस्तकालय में अब तक है। यह ग्रन्थ छप तो चुका घी पर प्रचलित न हुआ । | (9) लतायफ हिन्दो--( १र्दू, हिन्दी औं व्रजभाषा में १९९ कहानियां । यह किसी समय कलकत्ते से में News Cyclopedia 14industani नाम से छपी घी ॥ (८) माधोनल ( माधवानल )--यह ग्रन्य मोतोराम कवि ने नगदग सं० १०५५ मैं” ब्रजभाषा में उपन्यासकार न्नुि रखा धा। उसी से लल्ल, लाल ने हिन्दी में उलथा किया । | (2) वेतालपचीसी–प्रसिद्ध कवि सूरतिमिश ने शिवदासरचित संस्कृत में अनुवाद कर व्रजभाषा में बेतालपचीसी वनाई थी। उसी गंध को लह, लाल ने हिन्दी में किया । अवध के दौरिया खेड़ा. के राजा अचलसिंह के सभा कवि पण्डित शम्भुनाथ त्रिपाठी ( सं० १८१• } ने और पंः भोलानाथ ने भी एक एक बेतालपचीसी वनाई हैं ।। () लातुचन्द्रिका-यह ग्रन्थ इन दिनों घर घर हैं । इस ग्रंघ को रचना में भी सुरतिसिथ और में रिचरणदास हो के लेग्तु इनके अवलम्व है ।। वत: ललन्तान दड़े दिइन् न ये' यदि इनदिनों से होते तो कदाचित् वे इतने यश के भागी न *

  • * । परन्तु जिम समय ये थे उस समय हिन्दी दुर्दशाग्रस्त थी इसलिये जो लिख गये वह बहुत

sur न तो उनका कोई ग्रन्थ निज मस्तिष्क का है और न कोई सीधा संस्कृत का लिया है ॥ श्रीरों । ॐ रथित संजभाप के ग्रंथ ही पर उनका नर्तन हैं ॥ लालचन्द्रिका के अन्त में ‘हूं विनव” अदि कुछ

  • दो सो ६ लाल ने ऐसे लिई हैं मानो अपने बनाये हों पर वे मूव कृष्णकवि के हैं ।

• ६३ पास लहान की ये छपाई कापी ।