पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/५१

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भूमिका ।।.. ईनने दो पंक्ति संस्क्रुत लिखी हूँ वह भी एसो ऊटपटांग हैं कि देखते हँसी आती है। जैसे, इति श्री

  • कविलालविरचितलीलचन्द्रिका बिहारी सतसई टीका प्रस्ताविक अन्योक्ति नवरसे नृपस्तुति वर्णन

नाम चतुर्थप्रकर्ण श्रीराधाकृष्णप्रसादात्. सम्म बण, ग्रन्य निर्विन्न समाप्तं शुभमस्तु ॥” ,,, ये संस्कृत के अनभिज्ञ तो थे ही परन्तु ये ब्रजभाषा भी उत्तम रीति से नहीं जानते थे अथवा

  • अगराबासी होने के कारण जानते भी हों तो उसका ठीक मर्म नहीं समझते थे अतएव जो कुछ इनने

सोधना चाहा वही ब्रजभाषा से च्युत हो गया औ विगड़ गया ब्रजभाषा में तालव्य श और टवर्गीय

  • या दैवातही कहीं होतो हो नहीं तो नहीं हो पाया जाता है । परन्तु लल्ल, लाल ने यह अपनी पण्डि.

ताई दिखलाई है कि अनेक सकारों को पुनः शकार वना के शोन कै शड़के झाड़े हैं । जैसे, दोहा ७१५ "शशिबदनौ मोसो कहत” इत्यादि और दोहा ६२० “शीतलतारु सुगंध की घटै न महिमा ॐ भूर । पौनसवारे जो तज्यौ शोरा जानि कपूर”, इत्यादि ॥ ब्रजभाषा में तालव्य श और मूर्धन्य ष को दन्त्य स का आकार ग्रहण किये तो कई सहस्र बर्ष हुए ॥ व्रज को अति प्राचीन भाषा शौरसेनी प्रा- कातही इसकी साक्षी है । जैसे रत्नावली “दुलह जवाणुराश्री लज्जी गुरुई परब सो अय्या । पि सहि विसलं पेम्यं सरणं सरणं ण बारकम् ॥ . | हां उस समय शौरसेनी भाषा में समस्त न कार ट बर्गीय ण कार हो गए थे जैसे जैण विण राहि । जिज्निय अगुणिज्जिय सो किदा वराहोबि । पतेविण अरडाहे भणकस्मण बल्लहो मग्गौ इत्यादि । परन्तु काल का ऐसा माहात्म्य है कि धौरे २ पुनः सब के सब टबर्गीय णकार तवर्गीय नकार हो गए। केवल कण्ठ आदि शब्दों में मिले हुए ण रह गये हैं ॥ .यह अनुभव उनै न था अतएव श औ ण ठीक

  • करने का कुछ यत्न किया उसके अनन्तर मर्म विना समझे सुनशी नवलकिशोर और पण्डित रामजसन

प्रभृति दो तीन महाशय ने ब्रजभाषा के उसी सोधन को चलाया । फिर शिक्षा विभाग के ब्रजभाषान- भिज्ञ लोगों ने बालकों के पढ़ने के लिये कितनेही ग्रन्थ इसी ढङ्ग पर चलाये और डिग्री साहबों को आज्ञा से गुरूजी लोग मार मार कर बच्चों को इसी कुरस्ते चलाने लगै सो यह बड़ाही अनर्थ चारो के ओर फैलता जाता है ॥ विहार में भी यह अनर्थ होता देख यहां के प्रसिद्ध खङ्गविलास छापेखाने के अध्यक्ष से भो मैंने यह विषय कई वेर कहा और अपने मासिक पत्र पीयूषप्रबाह में भी छापा अनन्तर खङ्ग बिलास के अध्यक्ष महाराज कुमार बाबू रामदीनसिंह ने कहा कि हमको ग्रेयर्सन् साहब के द्वारा श्रौतुलशीदास जी लिखित रामायण मिली है उसके देखने से आपकी बात और दृढ़ हुई क्योंकि उसमें बहुत श औ रा नहीं है ठीक जैसा आप कहते हैं वैसाही है पर क्या किया जाय कोई सड़ा सा डिपो में इंसपेकर भी इन बातों को समझता तो कुछ ‘भाषा कोशोधन होता ॥ . . . . . . . . , ... | लल लाल ने केवल इतनांही नहीं किया परन्तु ब्रजभाषा में जिन 'यकारों को जकार हो गया है । । उने फिर इनने य बनाया जैसे दो ३० योवन नृपति ( दो० २१) “योवन आमिल” (दो०:३२) * । 'योवन जैठ दिन” ऐसेही "यद्दपि, यद्ययि, यश अपयश, यमकरि, युवति, योग युक्ति, आदि ।:: : E: 1