पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/५२

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विहारीसत्सई की व्याख्याओं का संक्षिप्त निरूपण । ६ ५. में किसी ठिकाने इतने अपनी हिन्दो भी ब्रजभाषा से मिली विलक्षण ही नरसिंह कार लिखी है जैसे 4 ( दोहा ०६२ ) “उत्कण्ठित होते हैं देखें है कि कब थोकण अवें और मैं अपना सच दिखाऊ ।” । ५ ये कई एक बातें “इसलिये दिखाई गई हैं' कि सयह त्याग न विनु पहिचाने” । अर्थात् इनके

  • अनुसार औरों को उचित नहीं है कि ऐसे शब्दों का प्रयोग करें ॥ .

इनके नामोल्लेख चार प्रकार से मिलते हैं । लल्ल लाल, २ लल्ल जी लाल, ३ केविलाल, लालचन्द्र ॥ 4 नन्न लाल ने और सव टोका कारों से विलक्षण कास यही किया है कि दोहे के शक क्रम के अ. ५ नुसार, अर्थ रखा है । इनके ग्रन्थ में शङ्का समाधान भी अच्छे हैं परन्तु सुरतिमिश आदि के ग्रन्थ देखने के अनन्तर ये शङ्का समाधान इतने विलक्षण नहीं प्रतीत होते तथापि कितनेही अद्भुत अर्थ और शङ्का समाधान इनके स्वयं कल्पित हैं और वे अत्युत्तम हैं । इसमें सन्देह नहीं कि लल्ल जी लाल ने हिन्दो गद्य लिखने का अपने भविष्य विद्वानों को पथ दिखला दिया और पूर्ण परिश्रम औ केवल विद्या*

  • भ्यास में जीवन व्यतीत किया और हिन्दी गद्य को उस समय सिंहासन पर बैठाया जिस समय गुर्जर
  • भाषा श्री वङ्गभापा बालिका थीं। यदि उस समय से आज तक सुलेखक लोग हिन्दी की सेवा करते

में तो यह सारे भारत में चक्रवर्तिनी होती और ऐसा कदापि न होता कि उर्दू की पताका उड़े श्रीर

  • में कहीं स्थान न मिले । इसलिये हिन्दी भापा के परमोनायक विद्दान् लल लाल कवि को कोटिशः

धन्यवाद देना धावत् हिन्दो के रसज्ञों का धर्म है । | यह नहीं विदित कि कितने वर्ष के बय में किस स्थान पर लन्न लाल कवि ने संसार का त्याग किया। ५ (१३) सरदारकवि कृत टीका-काशिराज महाराज ईश्वरीप्रसादनारायणसिंह के सभाकवि प्रसिद्ध

  • यदि सरदार थे । इनके पिता का नाम हरिजन था । इनके शिष्य नारायण कवि हैं । इनके बनायें अनु-
  • वादित तवा संन्टहोत इतने ग्रन्थ हैं-

१ मा दित्यसरसो ३ हनुमतभूषण. ३ तुलसौभूपण, ४ सानभूपए, ५ कविप्रिया की टीका काशि भी प्रकाशिका, य४ ग्रंघ मरदार कवि और उनके शिष्य नारायण ने मिल के बनाया सो भूमिका में । पगित गोपीनाथ पाठक ने छापा ॐ ६ रसिकप्रिया को टोका, विहारीसत्सई की टीका } - रसंग्रह. ( संयत् १९५५ में रचित ) ८ मुक्तावली का अनुवाद ( यह ग्रन्थ प्रमुद्रित स्वयं सरदार कवि ने

  • मुझे दिया था । टोहे कवित्त ६पाई में न्यायशास्त्र का अनुवाद यह अधिर्य है। जिस समय मैंने

दे उस समय तक यह अन्य पूरा नहीं हुग्रा था । अाज तक भी पा नहीं ) १० मृरदास के ३८५। कट पद की टीका ३ । ५. २ #पत् ११३८ तक ६० वर्ष के बूढ़े कानो में महक्ष भदैनो में विद्यमान थे ।