पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/५९

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४३. :

..: :: भूमिका ।..............:
  • शिवसिंह और इन्हीं के अनुसार ग्रियर्सन, साहिब इनको जैपुरवाले कहते हैं । परन्तु यह कुछ है।

दिन जयपुर में रहे केवल इसीलिये जयपुरवाले नहीं कहला सक्ते । यद्यपि बिहारी कवि का महाराज जयसिंह की सभा का कवि होनाही प्रसिद्ध है । तथापि, कृष्ण कबि ने जैसाह और उनके मन्त्री राजा आयामल के विषय में यों लिखा है कि महाराज जयसिंह के रामसिंह, उन के कण सिंह से उन के. बिष्णुसिंह और उनके जयसाहि हुये । यही क्षत्रियकुल लाल दास रामचन्द्र उनके “महाराज” उनके राय पंजाब और उनके 'राजा अायामल्ल’ हुये । राजा अाया मल्ल पूर्वोक्त सवाई जयसाह महाराज के मन्त्री थे । सवाई जयसीह महाराज के परम कृपापात्र बिहारी । कवि ने सत्सई बनाई और राजा आयामल मन्त्रो की आज्ञा से ऋण कवि ने उन्हीं दोहों पर कविस

  • तथा. सवैये बनाये ।।

, उनके दोहे ये हैं। रघुबंसी राजा प्रगट उहि मैं धर्म अवतार । विक्रम बिधि जयसायरिपु दंडबिहंडन हार .. ॥ १ ॥ को सुकवि बिहारौदास सौं तिन कौनो अति प्यार । बहु भातिन सनमान सरि दौलत दई अपार ॥ । राजा श्री जयसिंह के प्रगट्यो तेजसमाज । रामसिंह, गुनराम सम नृपति गरौबनिवाज़ . ॥३॥ कृष्णसिंह तिनके भये केहरि राजकुमार। विष्णुसिंह तिनके भये सूरज के अवतार . : . ॥ ४ ॐ महाराज विसनेस के धर्म धुरन्धर धोर। प्रगट भये जयसाहि नृप सुमति . सवाई बौर ॥ ५ ॥ प्रगट सवाई भूप के मन्त्री मुनि सुखसार । सागर गुन सतशील को नागर परम उदार ॥ ६ ॥ आयामल अखण्ड तप जग सोहत यश ताहि । राज! कोनी करि कृपा महाराज जैसाहि ॥ ७ ॥ मन क्रम, बच सांची भगत हरिभक्तन को दास । वेदवचन निज धरम को जाके दृढ़ विश्वास ॥८ क्षत्रो फल छिति प्रै भये बैरी जग-बिख्यात। पर दुख वैरी.खण्डनो खण्डन गुन अवदात. लालदास अति ललित गुन प्रगट भये तिह बंस। रामचन्द्र तिनके भये निजकुलः के अवतंस ॥ १० महाराज तिनके भये जिनको यश अवदात । राय पँजाब सपूत मति उपजे तिनकै तात . ॥ तिनके प्रगटे तीन सुत बिक्रम वृद्धिनिधान । रक्षक ब्राह्मण गाय के निपुण दान कर वान । राजा आयामल्ल जग विदित राय शिवदास । लसत नरायन दास यस पूरन पुहुमि प्रकास : ॥

  • लीला युगलकिशोर के रस को होय निकेतु ।' राजा अायामल्ल को ता कबिता:सों हेतु ॥

माथुर बिष्ट ककोरकुल कह्यो कृष्ण कब्रिनाउ । सेवक हौं सब कबिन को बसत मधुपुरी गांउ ॥ राजा मल कवि कृष्ण परि ढखो कृपा के दार । भांति भांति बिपता हरौ दीनी लक्षि अपार ॥ १६ ॥ एक दिना कबि सो नृपति कही कही को जात दोहा दोहा प्रति कहो कबित बुद्धि अवदात ॥ १७ पहिले हूं मैरे यहै हिय में हुतो विचार करें नायिका भेद को ग्रन्य सुबुधि अनुसार : ॥ १८ ॥

  • जे नीकै पूरव कविनु सरस ग्रन्थ सुखदाय । तिनहि क्वाड़ि मेरे कबित को पढ़ि है मनलाय ॥ १८ ॥

० थे गद्दी पर न बैठने पाथे कुमारही गत हुए। . . . . . . . . . .