पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/६०

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विहारोसत्सई की व्याख्याओं का संक्षिप्त निरूपण ।।


जानि यहै अपने हिये कियो ग्रन्थ परकास । नृप की आयसु पाइ कै हिय में भयो हुलास . ॥ २० ॥ से करे सात मैं दोहरा सुकवि बिहारोदास । सव कोऊ तिनको पढ़ गुनै सुनै सबिलास : ॥ २१ ॥ में वड़ो भरोसो बानि में गह्यो अमरो आये । वाते इन दोहान संग दोनों कवित लगाय ॥ २२ ॥ । उक्ति युक्ति दोहान को अक्षर जोरि नवोन । करे सात कवित मैं पढ़े सुकवि परवीन मैं प्रतिद्दी दौठ्यो करी कविकुल स्मारने सुभाय । भून चूक कछु होय सो लीज्यो समुझि वनाय ॥ २४ ॥ में ऋण कवि इन्हीं जयसाह को जयसिंह कहते हैं। जैसा उनने जयसाह के, वर्णन वाले दोहे पर के कवितों में कहा है, यथा-- | दो० । प्रतिबिंबित जवसाह द्युति दीपति दर्पन धाम। सब जग जीतन को किया कायव्यूहमेनु काम ॥ सु० । के राजयदर्पण मन्दिर में महिमंडनु श्री जयसिंह सवाई । त्यी प्रतिर्विवनि की अवली चोर

  • तसे अतिही छवि छाई । केधों अनेक स्वरूप धरे रवि राजत मंडली मंड सुहाई । मानहुँ जीतिबे को

ॐ जग में रचना वपु व्यूह की काम बनाई ॥ १ ॥ दो० । चलत पाय निगुनी गुनो धनमन मुतियनमाल ! भेट भये जथसाह सी भाग चाहियतु भाल ॥ के ० । दीजत मॅगय के तुरंग रंग रंगन के तुरत भंडार शिर पानन सी भरिये । किम्मत विसाल साल सुधरन माल लाल होरा मुक्ताहन वकसीसढ़ार दरिये ॥ गुनी अनगुनी सबै कौलत निहाल हाल जांचक की विपति अनेक भांति हरिये । भेट भये नृपति सवाई जय साहजू सो होत वड़े फल भोग लैके कहा करिये ॥ २ ॥ | दो• । हत नर ने जयसाहि मुख तखि लाखन की फौज । जाचि निराखरहू चनै लै लावुन की मौज ।। क• । करस सवाई जयसिंह के अभंग जगमगत दिनेश को सो तेज अंग अंग में । लाग्योई रहते नित सूरमति जैको चाव दान करिवें को चित रहत उमंग में । परदल लाखन को नृप को वदन लखि मुनमुख रहि न सकत रणरंग में । आखर न जाने सोउ लाखन लहत सब जांचै सो अजांची हौत मौज in के प्रसंग में ६ ॥ दो • । सामान सयान सुरई सवै साहि के साथ । वाहुबली जयसाह | फते तिहारे हाथ है। ६० । जगमग्य। बेन्नछत्रपति को प्रताप नवखण्ड में अखण्ड दावे अग्नुि के माय है । तेरेई उदण्ड भुटर के भरोसे भाऊ रहत निक अददाते यह गाय है ॥ सुभट मसाज सामा सयन सुदान मुग्छ । र्भ स भांतिनु की महिझ के साथ हैं । १° रहय सवाई जयसिंह महाराज सदा समर विजय सिद्धि ३६. कृय : ।। ४ * ट्रो० । अनी यही उमटी न अभिधाहक भटभूप । मङ्गने करि मान्य हिये भी महि मडूलरूप ॥ । | साभर के दिन भाये उमड़ि अमित दृन्न मैंय सुभट महाविक्रम निधान है । गरज गर गई नियट -- ' राजय, रहुये टि एनी की बौन चाल ! १ मुमय की रीति के विरुद्ध है ।