पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/६१

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। भूमिका ।। में आप विकट कुवाड़े सांधि बरषत बान है (?) ॥ साहसी सवाई जयसाहि भूप ऐसे समै बौर रस रायो थिर से भयो तिहिँ थान है । उमगि उछाह महा मङ्गल कै. मान्यो हिये बदन को रङ्ग भयो मङ्गल समान है ॥५॥ । दो । यो दल काढ़े बलखते हैं जवसिंह भुवाल । बदन अघासुर के परे ज्यों हरि गाय गुवाल ॥ : क० । एक रसना सों मोपें कैसे क है परे जैते विक्रम अमित कौने नृपति सवाई हैं। केशव अघासुर ते राख्यो व्रज जैसे ऐसे हसन अली की दिली राखौ बगिलाई तै” ॥ जजिया निवाखो दावानल सों

  • प्रबल दुख बल कै बिपति हिन्दुवान की बहाई हैं । काली ज्यों कुचालो काटि दूर कौनों मुहंकमा कौ |

। रति प्रकास जग थाप्यो उजराई हैं ॥ ६ ॥

  • दो० । घर घर तुरकनि हिन्दुनौ देत असौस सराहि । पतिनु राख चादर चुरौ हैं राखी जयसाहि ॥

• क• १.आयो इत उसड़ि अजीतसिंह डायल संग लै बिकट सुभटन के समाज कों” । कहै कबिकृष्ण में इत दिल्ली के प्रबलदल निकसे सकल साजें सरम के साज को ॥ ऐसे समै बीर बिशनेश के अजित बाहु राखौ हैं दुहुन लाज करि के इलाज कों” । घर घर तुरकनि हिन्दुनी दुनी में सब देते हैं सौस जयः । साह अहाराज को ॥ ७ ॥ इन कवित्त में हसनअली और अजीतसिंह की चर्चा इतिहास को और भी पुष्ट करती है । शिवसिंह इनको बिहारीलाल का शिष्य बतलाते हैं यदि सचमुच ऐसाही हो तब तो कदाचित् बिहारी जी के विषय में इनका लिखना यथार्थ हो । कापण कवि बस्तुतः बहुत अच्छे कवि थे और इनके कबिते सचमुच कुछ उत्तम बने हैं तथा इनने । प्रत्येक दोहों का दोहाप्रस्तार के अनुसार भेद कहा है और उनका मकल आदि नाम भी कहा है । ग्रियर्सन साहिब बिहारीलाल का समय १६५• ईस्वी और कृष्ण कवि का समय १७२० ई० बताते हैं। तथा इन्हें क्रमशः गुरु शिष्य भी कहते हैं । और शिवसिंह बिहारीलाल को संवत् १६०२ और कृष्ण कवि को सं० १६७५ में बतलाते हैं। तथा दोनों को क्रमशः गुरु शिष्य कहते हैं । और विहारी जी अपने अन्य को समाप्ति सं० १०१६ में बतलाते हैं सो जहां तक सम्भव है यह ऐतिहासिक लोग समझ से लें । वस्तुततु विहारी का अन्य सं० १७१९ समाप्त हुआ और सवाई जयसिंह ने सं० १७५६ से सं० १८०० तक राज्य किया जिनके हौवान के यहां छष्ण कवि थे । यदि कृष्ण कबि का १७१८ में जन्म । हुआ हो तो भी ३० बर्फ के वय में इस दर्बार में रह सकते हैं और बिहारी भी ग्रेन्यरचना के अन- - । तर ३० वर्ष और जिथे हीं तो सवाई जयसिंह को भी राजसिंहासनस्थ देख सकते हैं ॥ बहुत लोग

  • कृष्ण कवि को विहारी का पुत्र भी कहते हैं और यह सम्भव भी है क्योंकि बिहारी भी ककोर चौथे

थे और ये भी कतार चौवे । तथा सन्नड़ व दोनों का कथंकधमपि पितापुत्र ऋोने योग्य है । विहारी

  1. का शिष्य होदा हो उन ली स्वीकृत किया है ।।

में किया क्या जाद, कवि ने शव चरखा गाया और प्रति दोहे के गुरु लघु के गिनने का यम उठाया परन्तु अपने जन्म कन्म का संवत् तक न लिवा ( निदर्शन के लिये इनकी दो कबितालिख दी हैं )