पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विहारीससई की व्याख्याओं का संक्षिप्त निरूपण ।

  • { ४) भारतेन्दुवावृहरिश्चन्द्रकृत सत्सईसिङ्गार खण्डित)-बाबू हरिश्चन्द्रइस वर्तमान शताब्दी में भाषा *
  • के परम प्रसिद्ध कवि हो गये हैं । वे अग्रवाल वैश्य थे वावृहरिश्चन्द्र का पूर्वनिवास दिल्ली घा इनका जीवन में

चरित्रयास रामशंकरशर्मा चन्द्रास्त नामक पुस्तक में छाप चुके हैं और बांकीपूरनिवासी महाराज कुमार वाव रामदौनसिंह और भी विशेप रूप से संग्रह कर रहे हैं। तथापि संक्षेप यह है कि काशी के प्रसिद्ध

  • रईम गोपालचन्द्र ( गिरधर ) के ये पुत्र थे इनका जन्म संवत् १९०७ में हुआ था जिस समय यह केवल
  • नी वर्ष के थे उसी समय पिता का परलोक हुआ । वै राजाशिवप्रसाद के स्कूल में तथा वनारस कलेज
  • में क्रमश: पढ़े । काशी के प्रसिद्ध कर्मठ विहान् पण्डित घनश्यामजी गौड़ ने इनकी जनेऊ कराई और

पण्डित दुर्गादत्तव्यास ( दत्तकवि मेरे पिता, इनका जीवनचरित्र खङ्गविलास यन्त्रालय में वादू चण्डी के प्रभादसिंह ने छापा हैं) ने इनको सन्ध्योपासन अमरकोष पंचतन्त्र रघुवंशादि कई ग्रन्थ पढ़ाये थे। ये ऐसे * में उत्कृष्ट बुद्धिमान थे कि थोड़े ही दिनों में भापाकाय अाप ही लगाने लगे और यदि कहीं कहीं सन्देह • में हो तो पण्डित टुर्गादत्त कवि से पूछ लेते थे । । थोड़े ही दिनों में कालिज का पढ़ना छोड़ दिया और वहुव्यय पूर्वक आनंद भोग करने लगे । बुढ़वासंगल में इनका भी छोटा सा कच्च्छा पटता था और बड़े नाच राग रंग होते थे इनको स्वयं गान अथवा वाद्य में उतना अभ्यास न घा और इस विषय में गहरी समझ भी नहीं थी परन्तु नाच मुजरे । से में इनका बहुत समय जाता था। रुपये को तो कंकर पत्थर से भी तुझे समझते थे यहां तक कि दि-

  • वाली पर अतर के दौवे वान्तते इनको हमने स्वयं देखा था और अतर को कुन्न शीशी उझिल के अभ्यंग

करना तो इनका स्वाभाविक या । जव ये कहो नाटक देखने जाय तो इनके साथ पच्चीस, तीस अथवा

  • चालीस जितने पुरुष रहें सबकी टिकटें इनी है ओर से ली जातौ धौं यों अपव्यय तो था ही परन्तु ।

कवि र पण्डितों को भी इनके हाथ मे सब दिन कुछ न कुछ मिलता ही था । काशी में कवितावर्धिनी १०

  • सभा प्रवस ३ इनों ने स्थापन को थी उस समय उसु सभा के सभ्य, निजजू. सेवक, जानकी, कामता, *

में सरदार, दुर्गादत्त, लोकनाथ, मन्नालाल, हनुमान, जोग्राम, नरायग, रमीले, वैनी हिज आदि उत्त- । मीराम कपि चे इस सभा में एक अल्पवयस्क सभ्य में भी वो मुझे सुकवि पद इसी सभा से मिला था । । | वा माइ नै कविवचन सुधा नामक साप्ताहिक पत्र निकाला और अपनी कविता से सहृदयों के

  • इदयों को पारित करना प्रारम्भ किया । दृर से लोग इनकी मधुर कविता सुन अहिष्ट होते थे और

गमप या मधुर श्यामसुंदर धुंधरा दानवानी मधुर मूर्ति ट्रेवु वनिहारी होते और वालाप में इनके । मधुर भाप नसता और पति न्टि ध्यपहार से वशद हो जाते थे। यहां तक कि मंत्रत् १८३० में में इनको नागों में भारदेन्दु कहना प्रारम्भ किया और इस समय में यावत् हिन्दी पत्र सम्पादकों ने से एम को पार किया है। | बिहारों के कविता ने इनके चित का भी पाकप किया और इननै विदारी के किनी : दोहों ?