पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/६५

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' भूमिका ।। ... . ... .... से पर कुण्डलियर करना आरम्भ किया कई वर्ष के श्रम से केवल कई सौ दोहों पर इनन कुण्डलिया वनाई परन्तु ग्रन्थ पूरा न हुआ। इनकी कुण्डलिया सब्सईशृङ्गार नाम से भाषासार नामक पुस्तक में बांकीपूर में खङ्ग विलास नामक यन्त्रालय में छपी हैं उनमें से दो तीन कुण्डलिया उदाहरण स्वरूप नीचे प्रकाशित की जाती हैं ॥ संवत् १८४२ से ३४ वर्ष के छोटे वय में हौं” इनका परलोक हुआ। इनके पूर्वज भी कई युरुष से लगढगे इसी वय में अपना ३ जीवन व्यतीत करते आये थे और इनने भौ ८• वर्ष में जितना काम हो सकता है उतना इस छोटे समय में करके अपना इतिहास समाप्त किया ॥ २ ॥ कुण्डलिया। मेरी भवबाधा हरी राधा नागरि सोय। जातन की आँाई परें स्यामहरित दुति होय ॥ स्थास हुरित दुति होय परै जा तन की झाई। पांय पलोटत लाल लखत सां- वरे कन्हाई ॥ श्रीहरिचन्द्रवियोग पीत घट मिलि दुति हेरी । नित हरि जा रँग रँगै हरी बाधा सोइ मेरी ॥ १ ॥ सीस सुकुट कटि काछनी कर मुरली उर साल । एहि बानिक मोमन बसो सदा बिहारीलाल ॥ सदाविहारीलाल वसो वांके उर मेरे । कानन कुण्डल लटकि निकट

  • अलकावलि धेरै ॥ श्रीहरिचन्द्र त्रिभङ्ग ललित मूरति नटवर सी । टरौ न उरतें नेकु

आज कंजनि जो दरसी ॥ २ ॥ | मोहन मूरति स्याम की अति अद्भुत गति जोइ । बसत सुचित अन्तर तऊ प्रतिं ।। विम्बित जग होइ॥ प्रतिविम्वित जग होइ कृष्णमय ही सब सू । इक संयोग वियोग भेद कछु प्रगट न बूझै ॥ श्रीहरिचन्द्र न रहत फेर वाकी.कछु जोहन । होत नैन मन एक जगत दरसत तव मोहन ॥ ३ ॥ तजि तीरथ हरिराधिका तन दुति करि अनुराग । जिहि ब्रजकैलिनिकुँजमम पग पग होत प्रयाग ॥ पग पग होत प्रयाग सरस्वति पद की छाया। नख की आभा गङ्ग कुँह समदिन कर जाया ॥ छन छबि लखि हरिचन्द्र कलप कोटिन नव सम । लजि । भजु मकरध्वज मन मोहन मोहन तीरथ तजि ॥ ४ ॥ सधन कुञ्ज छाया सुद्द सौतल मन्द समीर । मन् ह्व जात अज व वा जमु-* । ना के तौर। बा जमुना के तीर सोई धुनि अँखियनि आवै । कान बेनु धुनि आनि ।

  • कोऊ औचक जिमि नावै ॥ सुधि भूलति हरिचन्द लखत अजहू वृन्दावन । वन
  • चहित अवहिं निकसि मनु स्याम सरस घन ॥५॥ ::.:.

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