पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/६७

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..' भूमिका । . . .

  • सेखर 'शतचंद ॥ किय से शतचंद छंद रुचि काम बढ़ावति । नव नारिनहि नेह

नवल नागर उपजावति ॥ धावति धासहि धास बासबंर विरह सु खटकी । पूंछति सुधि बौराय आय अरि सोर मुकुट की ॥ ३ ॥ मकराकृत गोपाल के कैंडल सोहृत कान। धण्यो मनो हियघर समर ड्योढी लसत निशाने ॥ ड्योढ़ी लसत निशान शान ताकी अति चोखी । अबला को पिख तांहि होत जु न तिरण रोवी ॥ चकित जकित चित थकित बकति. नहि करसन | हुकरा। तकत इतै उत आइ तान रति जाल सुसकरी ॥ ४ ॥ सोहत ओढ़े पौत पट म्यासे सलोने गात । सनहु नौल सनि सैल पर तप अस्यौ प्रभात ॥ आतय पछी प्रभात किंध संपुट हाटक अहि। सोसत सालिगराम । भक्त योपिन के चख चहि । हुरि सुमेर के विजा के तट मन्दिर जोहते । पुरट प्रगट तिहि छाय आय सुचि सलिलहिँ सोह्रत ॥ ५ ॥ अधर धरत हरि की परत ओठः डीठ पट जोत । कृरित बांस की बांसुरी इन्द्र धनुषसुति होत ॥ इन्द्रधनुषद्युति होत जोति पुखिन खिन दूनी । मिल घनश्यामहि साथ भई छवि छुटनि न ऊनी ॥ हरि सुमेर कर गान अमृत रस बर- षत सुमअर | गात सौत सम रही बैठ बालस के सु अधर ॥ ६ ॥ . किती न गोकुल कुलवधू काहि न किहिं सिख दीन । कौने तजी न कुलगलौ

  • द्वे सुरलौ सुरलीन ॥ द्वे सुरली सुलीन दौन किहि नहि तन मन धन । सन मो-

से इन सिलि मोह गई को बनहि न बन ठन ॥ काहि न धर्म अचार काहि नहि श्रुति में सति उकती । हरि सुमेर हरि हैर उठत हिय किह नहि जुकती ॥ ७ ॥ गोपिन सँग निसि सरद की रसत रसिक रसरास । लहाछेह अति गतिन सों सभने लखे सभ पास ।। सभन लख सभ पास आस नहि रही मान की। प्रीति पि- आरिन साथ एक जिमि राम जानकी ॥ हरिसुनेर सुरदेव विवानन चढ़िचढ़ि लोप । धन राधा धन कृण धन्य यहि गोपी गोप् ॥ ८॥ श्रेयसन साहब का सतसई संस्करण । । यद्यपि जार्ज अव्राहम् चैयर्मन् साहब ने स्वयं कोई टीका'नहीं रचौ है तथापि साधारण टीकाकारों की अपेक्षा बीस गुना परिश्रम करके इननै यह ग्रन्थ प्रकाशित किया है । इस ग्रन्थ में सू सतसई पर।