पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/६८

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विहारोससई की व्याख्याओं का संक्षिप्त निरूपण ।।

  • लालचन्द्रिका टोका को अति इद वार प्रकाशित हो हैं । छल छल में और टोक कारों का सत ले

भी के टिप्पणी की है। अन्त में विविध कठिन दोहीं को टीका भी लिखी है। अनन्तर सुचौपत्र में विविध

  • टीकाओं के अनुसार दोहों का क्रस दिवन्नाया है और प्रादि में नाना विषयों में पूरित प्रलव भूमिका

है तथा प्रसङ्गतः समस्त भाग्राभूपण का अंग्रेजी अनुवाद है । इस से वो, सन्देह नहीं कि इस ग्रन्थ के मुटु में प्रकाशक महाशय ने अत्यन्त परियस किया है, यहां तक कि यद्यपि चिरकाल से नाना ग्रन्थों के गुण और रचना तथा पठन पाठन के कारण साहब । के नेत्र कुछ २ बलहीन हो गए थे तथापि इसी अन्य के प्रकाश तथा संस्करण के समय इन को प्रवन्न । नेत्र रोग उत्पन्न हुश्रा, परन्तु चश्मा अादि का उपयोग कर तथा सहायक से लिखने पड़ने का काम *

  • लेकर उन ने अपने काम को यथास्थिति ही रखा।

निःसन्देह से पुरुष विद्या और देश की उन्नति के लिये अपने प्राणों को भी कुछ नहीं गिनते हैं

  • केवल ने तो क्या हैं ।

| इन वर्तमान महापुरुष का जीवनचरित जहां तक मुझे मिल सका सो यह है ॥ प्रायनगड़ के डलिन्नगर में सन् १८५१ को जनवरी ७ को जार्ज अन्नाहरू ग्रेयर्स का जन्म हुआ।

  • इन के पिता जार्ज अब्राहम् शेयर्सन् एल. एल. डी, इस नगर के प्रसिद्ध वारिसर थे ।।
  • ग्रेयसन् माहब ने सेलिसबरीनगर के ग्रामर स्कूल में पढ़ना आरम्भ किया । वहां के अध्यक्ष डाक्टर

। वैष्क्षमिन् दाल कैनेडी धे । और जब इन को पद वृद्धि हुई और ये ग्रीक की कैम्बुिज़ यूनीवर्सिटी में

  • प्रफेसर दो में चले गये तब उस स्कूल में रेवरेण्ड एच्. डब्ल्यु. मास साहब अध्यक्ष हुए र उन के ।

समीप ग्रेयर्सन् साहब पढ़ते रहे । | सुइ वर्ष के वय में चेयर्मन् साहव इस्रो नगर के होनीटी कालेज में प्रविष्ट हुए । और वहां गणित । में आदर पाया ( अानर पास किया ) और संग्कृत में राबर्ट एन्किन्सन् के पास शिक्षालाभ करने लगे । और वीर श्रीलादअली के पास हिन्दुस्तानी भाषा पढ़ने लगे । अब तक इस कालेज में संस्कृत का १r रितोषिक किमो को न मिला था परन्तु यह बात इस कालेज के लिये पहली हुई कि इनमें संस्कृत के के लिये यूनीवमिंटो में दो वैर बड़े पारितोषिक पाये । श्रीर हिन्दो के लिये भी इनें पारितोपिक मिला । | मर मर एनिन् ॐ हारा इन यो प्रधान प्रधान भाषा र हिन्दुस्तानी भाषा के लिये प्रबल व्यसन ३३ जित हु या जिभ ने रोयमन् साहब का नाम विद्वानों में की नीय प्रा ।। । सन् •८६१ ६ इन भारतवर्ष को भिविन्न मर्विस पास किया श्रीर जिस देश की भाषा में इन को पटने को रे ॥ कर रया छ र जिन देश में धान को चिरकाल में इन का उत्साई या 'उम भा- तयः में में १८०३ में ये । दैवान् एम नामय यहा बड़ा दुर्भिक्ष पड़ा था र छपातु गवर्गमैराट । पति प्रा : र ६ रा में ध र दुर्भिक्ष सम्बन्ध बड़ा महकमा सुन्न र बा ! दुर्भिक्ष व । । रता दिइर में अधिक इसके । यो नो नो प्रज्ञा रक्षा के काम में ग्रेवन् ३ भी नियुक्त किये ।