पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/७०

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5 विद्यारीसत्सई की व्याख्याओं का संक्षिप्त निरूपण ।। 44 . 4 . 2 . 5. 4 शेप गानों का संग्रह किया और पण्डित इली झा ने तिरहुत भाषा का एक व्याकरण बनाया था सो । निवा इशा उन ने साहब को दिखाया उस से भी इन ने बहुत साहाय्य लियो । और मुकद्दमों में। जितने गवाह आदि आवें उन का इज़हार, साहव, तिरहुता ही में लेने लगे और उन के शब्दों को ध्यान दे कर सुनने लगे और जो नया शब्द हो उसे उसी क्षण लेखकों को लिखवाने लगे । सुना है कि जो पण्डित लोग साहब के यहां आते थे उन साहब कुछ भेट भी देते थे । तिरहुत से ३/ प्रौर एक

  • नीड़ा धोती प्रायः पण्डितों को दिया जाता है सो इस विदाई के लिये साहब भी बहुत पण्डितों के

यजमान हो गये थे ।। | तिरहुत के प्रसिद्ध महाकवि विद्यापति के गान और मनवोध के हरिवंश ने साहव को बहुत से | प्रयोगों का परिचय बनाया ॥ | इसी ममय इन ने कचहरी और मधुबनी वस्ती के बीच में एक उत्तम बाज़ार वसाया जो आज तक ‘ग्रेयर्सन्गञ्ज' नाम से प्रसिद्ध है। साइव ने इस यम के फलस्वरूप तिरहुत भाषा का व्याकरण प्रकाशित किया और अति दुर्लभ # मनबोध के हरिवंश की भी ग्यारह अध्याय प्रकाशित की ( इतनी ही. मिली )

  • साहब को रङ्ग पुर ही से कुछ २ ज्वर सा हो गया था और मधुबनी में उस से पूर्ण मुक्त नहीं हो
  • सके इस कारण उने भन् १८८• में इङ्गलैण्ड जाना पड़ा । इसी वर्ष यूरप ही में इन ने विवाह किया

र प्रसन्न हो इसी वर्ष पुनः भारतवर्ष में आये ।। म समय बिहार में शिक्षाविभाग में कैथी अक्षरों का प्रचार हुआ था और कैथी ही में विविध | पुस्तक पाने की शिक्षा विभाग की आज्ञा .हुई घो परन्तु महाजनी की भंति कैथी में न तो स्त्र दीर्घ ही का विभेद था और न युक्ताक्षर ही थे, सो गवर्नमेण्ट ने इन को स्वतन्त्रेण इस काम पर नियुक्त दिया कि वे कैयौ के प्रभाव को पूरा करें और तदनुसार टाइप ढलवावें । इस काम को पूरा कर । साई पुनः इगट म्याजिटेट हो पटने आये और यहां कई वर्ष पर्यन्त रहै ॐ ।। यह। इनों ने बिहारो भापी की व्याकर बनाया और बिहार के साधारण निवासियों का चरित 4 ( 1•la:12Peasa11t. life ) तिव्र । इन ग्रन्थों के कारण यूरोप में ये प्रधान विद्याप्रचारक विद्वानी में

  • गिने गये। अब इन ने वह एशियाटिक सोसायटी, रायन्न् एशियाटिक श्रीर जम्मन श्रोरियग्टन मो-
  • सायटों के भासविक पत्रों में गहन ने व निरवना आरम्भ किया।

मुन् १८८y में इन ने इन छुट्टी ली और इस छुट्टी का विशेष अंग जन्मनो में बिताया। । सन् १८८९ में माध्यिा में वोएनानगर में तत्त्वज्ञावक विद्वानों की महासभा हुई. यो उम्र में भारतीय - गदनमैट की पोर में इस भै गये थे। ६ मी अगर में इन में मुझ से भी परिचय हुशा और आज तक इन की समान रूपा चन्नी