पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/७१

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| भूमिका ।। , | इस ( कांग्रेस ) महासभा में इन ने एक प्रबन्ध भारतवर्ष के मध्य समयं की भाषा साहित्य के विषय से पढा । उस की वहा अत्यन्त ही प्रशंसा हुई । फिर काले पा के इन ने उसी भावार्थ को फैला के

  • पुस्तकाकार से परिणत किया जिसका नाम (“The Madieval and Modern Vernacular Literature

of Hindustan' ) प्रत्येक भाषारसिक के अागे अतिरोहित हैं। थोड़े हो दिनों के अनन्तर साहब गया के कलेक्टर औ मेजिष्ट्रेट नियत हुये और सन् १८०३ तक के अश्याहत वहा हीं रहे ॥ इस समय में बिहारीभाषा के तारतम्य कोष (Comparative Dictionauty of Behari Language) के प्रबन्ध में इन का विशेष समय जाता था ॥ ( इस ग्रन्य के रचयिता डाक्टर ए, एफ, डफ हार्नली D. A. F. Rudolf Harnali औ ग्रेयर्सन् साहब दोनों मिल के हैं । ) गया में जब तक ग्रेथर्सन् साहव रहे तब तक यहँ की प्रजा अत्यन्त ही प्रसन्न रहो यहँातक कि किसी समय हिन्दू मुसल्मान के झगड़े को अत्यन्त हो सम्भावना हो गई थी परन्तु इन के प्रवन्ध में दोनों

  1. दल प्रसन्न रहे और एक ग्राम में एक स्त्रो सती हो कर भी देग्ध हो गई थी उस विषय में कोई उपद्रव

न हुआ ॥ घोड़े दिन हुए कि बरसों के परिश्रम में इन ने बिहारीसतसई का एक संस्करण प्रकाशित किया है । इस की भूमिका में प्रसङ्गवश समस्त भाषाभूषण का अंग्रेजी अनुवाद है । और उपसंहार में अ• * नेक दोहों के विचित्र अर्थ तथा कुछ शङ्का समाधान हैं। तथा लालचन्द्रिका, हरिप्रकाश, अनवरचन्द्रिका,

  • ऋणदत्त को टीका, शृङ्गारसप्तशती को टोका तथा रसकौमुदी के अनुसार दोहाङ्ग को सूचनका भी
  • दी है और स्थल स्थल में बड़े श्रम ३ टिप्पणी भी की है ॥

इन दिनों पदमावत तथा Encyclopedia of indo-Aryan Research की रचना के अधिक परि अस से इन के नेत्रों में ऐसा आघात अा गया है कि इन को सूक्ष्माक्षर पढ़ना लिखना कठिन हो गया है । परन्तु इन की वकाख में ऐसी दृढ़तर प्रतिज्ञा है कि “काय्यं वा साधयेयं देह वा पातयेयम्' की कहाउत हो रही है ॥ पहले इन ने डाकुरों को सम्मति से चश्में लगाये फिर लिखने के लिये एक यन्त्र सँगा लिया जिस पर हार्मोनियम के बाजे की भाँति अँगुली फेरने से लेख होता जाता है । इस अ-

  • वस्था में भी एक काश्मोरो वालमुकुन्द पण्डितजी के साहाय्य से इन ने काश्मोरभाषा व्याकरण (प्राचीन

| मुद्रित कराना आरम्भ किया । और इसो नेत्र रोग को चिकित्सार्थ यूरोप गये हैं ।। । सन् १८८.६ में ग्रेयर्सन साहब हवड़े से बदल कर बँकीपुर आये और सम्प्रति यहँा अफीम के एजेण्ट हैं • यद्यपि ग्रेयर्सन् साहव का प्रधान उद्योग उन लोगों के साहाय्य के लिये हुआ है जो अंग्रेज हैं और जो भारतवर्षोंय भाषादि सम्बन्ध में बहुज्ञता चाहते हैं । तथापि अंग्रेजोभावा के अभिन्न भारतवासियों 4 के भी अनेक उपकार के अनेक ग्रन्थ इन के द्वारा प्रकाशित हुये हैं ।।