पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/८

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॥ श्रीहरिः ॥ सादर समर्पण। । श्रीमन्नन्दनन्दन के अनुग्रह से, जो विद्वान् जनों के एकमात्र आधार हैं, कवि जनों के शुगाग्रहगा के लिये जिनका अवतार हैं, जो सरस कविता के रिझवार हैं, * गुणी के लिये दया के पारावार हैं, गुप्त औ लुप्त विद्याओं के प्रचार सनातन सद्धर्म * के उदार निज प्रज्ञा में सार्वदिक सुख के संचार खदेश के उपकार राजनीति के अ धिकार तथा शान्तिमय विचार से भरे जिनके वार हैं, उनी परसोदार धीरधुरन्धर । वीरवर अयोध्यानरेश्वर श्रीयुत महाराजाधिराज नरव सर प्रतापनारायण सिंह देव " * ० सी० ० ई० महामहोदय के करकमल में श्रीराधामाधव के प्रसाद स्वरूप तथा आशीर्वाद की कुसुमाञ्चलस्वरूप यह विहारीविहार ग्रन्थ अर्पित है । यह भला । वु। जैसा कुछ हो परन्तु वे इस शुभचिन्तक को निज समझ अङ्गीकार करें यही प्रार्थनौय हैं। | इस ग्रन्थ का प्रकाश उनी के उत्साह औदार्य और साहाय्य से हुआ है इसलिये । उन पर जितने धन्यवाद और आशीर्वादों की कुसुमल्लष्टि की ऊँय सी थाड़ी हैं। ऐसे महाराज पर परमात्मा सदा अनुग्रह कर ॥ इति । माघ शुक्ल श्रीपञ्चमी । । तदीय सार्वदिक शुभचिन्तक संवत् १८५४ अस्विकादत्त व्यास ।