पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/८१

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| बिहारी बिहार की रचना । ।

  • कोशल देश नरेश महाराजाधिराज Honourable श्रीप्रतापनारायणसिंह बहादुर K. C. 1. E. हैं । उन्हीं
  • के करकमल में श्रीराधामाधव के प्रसाद स्वरूप यह अन्य समर्पित है।
  • इसी यात्रा में श्रीमन्महाराज ने मुझ से घटिकाशतक कविता अर्थात् एक घड़ी ( २४ मिनिट ) में

। प्रस्तुत विषय पर नवीन १०० लोक बनाने का कौशल तथा शतावधान अर्थात् एक सङ्ग सौ काम तक करने का कौशल भी देखा ( इस दिन केवल ३५ अवधान किये गये थे । इन में समस्यापूर्ति व्यस्ताक्षर अंग्रेजी फ़ारसौ अरबी आदि वाक्य, गुणन, वर्ग, किसी तारीख़ पर बार निकालना, प्रस्तार, नष्ट, उद्दिष्ट, ताश, शत रञ्ज, वर्णन, शास्त्रार्थ आदि विषय थे ) अनन्तर श्रीमहाराज ने मेरा सौमातिरिक्त सम्मान कर आज्ञा की कि 'इस विजयदशमी के आम दर्वार में आप को सुवर्ण पदक तथा प्रशंसापत्र : दिया जायेगा ।' आमन्त्रणानुसार मैं विजयदशमी पर दर्वार में पहुंचा दबर की शोभा देखने ही योग्य घौ ।। । दूर दूर के रईस तथा बेवुअनि एकत्रित थे । यूरोप के प्रसिद्ध विद्वान् पिङ्कट साहब भी सभा में सु- शोभित थे । पश्चिमोत्तर के प्रधान प्रधान पण्डित, कवि गुणी पत्र सम्पादक और वक्ता विद्यमान थे ।। चारांओर सौढ़ी की अँति ऊँचा दूसरा और दूसरे से तीसरा यी मञ्चों की अवली सजी थी सुवर्ण तथा रजत के कामवाला प्रधान उच्च सिंहासन श्रीमन्महाराज का था । श्रीमन्महाराज के कर्मचारियों में

  • जितने महाशयों के काय्य की प्रशंसा हुई उन को पारितोषिक मिला और जिन की निन्दा हुई उन ।
  • को शिक्षा दी गई । फिर श्रीमान् ने खहरुख से मुझे सुवर्णपदका तथा घटिकाशतकपदसहित एक

। प्रशंसापत्र दिया और मेरी प्रशंसा कर मुझे अपनी अनुपम दया से खरीद लिया ॥ कान्यकुबेर ने दो बौड़े पान के देकर शौहर्ष कवि की जो अपूर्व प्रतिष्ठा की थी, श्रीमहाराज ने सुवर्णपदक देकर

  • उससे कहीं अधिक मेरी प्रतिष्ठा की। थीमन्महाराज की इस गुणग्राहिता की पूरी प्रशंसा करने के

लिये कोच से शब्दों का दारिद्रा है और कविता में उक्ति युक्ति का दारिद्र्य है। इस कारण इस ग्रन्थ में । जिन दोहों में बिहारी ने अपने ग्रन्थ में निज महाराज जयसिंह की प्रशंसा की है उनी दोहों की कुः । स एडलियाओं में मैंने सहाराज कोशलेश की प्रशंसा कर कविता सफल की है।

  • प्रायः इन दिनों के राजा महाराज को इतिहास. का व्यसन नहीं रहता और यही प्रधान कारय ।
  • है कि इतिहासविद्या नष्ट हो गई। परन्तु हमारे महाराजाधिराज कोशलेश्वर की सर्वतोमुख रुचि है।

इस कारण मैंने विहारी तथा इनके व्याख्याकारों को चरितावली लिखने का मम उठाया और दो वर्ष । के घनिष्ठ परियम से भला बुरा जैसा वना, चरित लेख किया । आशा है कि जैसे मैंने शिवसिंह और शीयुत ग्रेयसन साहब बहादुर के लेख से सहायता पा उस विषय को यथा शक्ति आगे बढ़ाया वैसे ही ने मरे भविष्यत् ऐतिहासिकगण मेरे इस दरिद्र लेख से सहायता पा यथाभक्ति इसे और आगे बढ़ायेंगे । है और है कोशन्नेय का गुण गावेंगे तथा मेरी भूल चूक सुधार भविष्यत् काल के लिये इतिहास का पथ ।

  • परिष्कृत करें ॥

अम्बिकादत्तव्यास ।