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विहारविहार ।। सखि सोहत गोपाल के उर गुंजन की माल।।। बाहर लसत पिये सनी दावानल की ज्वाल ॥ ८ ॥
- दावानल की ज्वाल सोई उर गुजनमाला । मृगमदचन्दनछाप सोई पुनि
- धूम विसाला । सीतल अतिही भई पाय कौस्तुभ मनि सँग लखि । सुकवि
। नैन जुग फँसे चिलोकत नन्दनदन सखि ॥ १८ ॥ | नितप्रति एकत ही रहत बैंस बरन मन एक है। चहियत जुगल किसोर लखि लोचन जुगल अनेक ॥९॥.. लोचनजुगल अनेक सहस जो होहिं सँवारे । विना पलक की दरनि टक- २ टके रहहिँ थिरारे ॥ तौ ताज जग के जाल ठानिनँदनन्दचरनरति । सुकवि रह मै जुगल किसोरहिँ निरखत नितप्रति ॥ १६ ॥ गोपिन सँग निसि सरद की रमत रसिक रसरास ।। लहाछेह अति गतिन की सवन लखे सव पास ॥ १० ॥ .. सवन लखे सचपास गतिन की लहाछेह स । ताताई करत नचत सव भरी नेह स ।। ठठक्यो चन्द हु सुकवि नखतजुत रँग्यो प्रेमसँग । नटवर ज-
- मुनानिकट आजु नाचत गोपिन सँग ।। २० ॥
मोहि करत कत बावरी किये दुराव दुरै न।। कहे देत रँग रात के रँग निचुरत से नैन ॥११॥. ..।
- रँग निचुरत से नैन कुटी विंदुरी अरु टीकी । कवरी विथुरे चार अधर की
२. दुति त्यौं फीकी ॥ छाप पीक की लगी कपोलनि हीय नख़च्छत । सुकवि प्र-
- गट भई बात वावरी मोहि करत कत ।। २१ ॥