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बिहारीविहार । ।
- नैन ठठकाइ करत सुख ॥ खेलत गुड़ियाखेल सुकबि करि बहुविधि पटुता ।
जोवन झलक्यो झमक अङ्ग तउ गई न सिसुता ॥ ३० ॥ | तिय तिथि तरनि किसोर वय पुन्यकालसम दोन*।... | का हू पुन्यन पाइयत बैससंधिसंक्रोन ॥ १८ ॥:: :: वैससन्धिसंक्रोन समै जो जोग मिले सुचि । बुध मनसिज उपदेस देइ
- पुनि अधिक ठानि रुचि ॥ मञ्जन कीजै प्रेमतीर्थ तिहिँ छन निर्मल हिय ।
बड़े भाग तें मिलै सुकवि ऐसी सुदर तिय ॥ ३१ ॥ .. । लाल अलौलिक लरिकई लखि लखि सखी सिहाति। आज काल्हि में देखियत उर उकसौहाँ भाँति ॥१९॥:::.. उर उकसौहाँ भाँति भौंह कछु व्है गई बाँकी । चितवनि तिरछी भई घात पुनि कति निसँकी ॥ झूलात सखियन सङ्ग अलापति ज्याँ वसन्त पिक । सुकवि रसीली रहनि ठहनि सब लाल अलौकिक ॥ ३२ ॥. . अपने बैंग के जानि कै जोबन नृपति प्रबीन ।
- स्तन मन नयन नितंब क बड़ी इजाफा दीन ॥२०॥
दीन इजाफा चहु नितंव तन मन नैनन । दीन मधुरता अनि अधर । आकृति वैनन काँ॥ दीन मनोहरता हु चलनि चितवनि भगी हँग । सुकवि
- अपूरव राज कियो जोवन अपने अँग ॥ ३३ ॥. .
• ॐ दोन दोनों” ।
- * स्तन” शब्द यथास्थित प्रयोग कर्ण कटु है । इजाफा = बड़ाई अधिकाई । हरिप्रकाश में
- अपने तन के पाठ है)। . . . .