पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/९२

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' विहारीविहार ।। होत मलिनदुति वदनकमल सर्व सौतिन केरो । ज्याँ अमन्द मुखचंद । तिया को करते उजेरो ॥ ॐ रूपरंगवयगरवदरव सव परयो चुलहिया । सुकवि । करत है राज आज यह देह दुलहियाः ॥ १३ ॥ मानहु मुखदिखरावनी दुलहिन करि अनुराग ।। | सास सदन मन ललन हूँ सौतिनि दियो सुहाग ॥ २६ ॥ सौतिन दियो सुहाग लखत ही तिया छवीली । निज हियरो दे दियो सबै सहचरी रसीली । निजकविता को जोर दियो सर्व सुकवि सुजान हु । ताना । दियो चवाइन मुखदिखरावनि मानहु ॥ १४ ॥ पुनः । - सौतिन दियो सुहाग ललन हू आजु सयानी। जामिनि कामिनि स्याम काम की समै सुहानी ॥ सारी कारी पहिरहु पट छटकावहु कै सुख । क्य उदास जिय होहु सुकवि बिहँसहु मानहु मुख * ॥ ४५ ॥ निराखि नवोढानारितन छुटत लरकई लेस ।। भी प्यारी प्रीतम तियन मानहुँ चलत बिदेस ॥२७॥ मानहुँ चलत विदेस यही सौतिन मन मान्यो । नवनागर बस होइ हमें बिसरेहै जान्यो । विनवत विधि को बार बार करि हिय अति पोड़ा । सुकवि । कहे किमि जरत जिय हिँ जिय निरखि नवोढ़ा ॥ १६ ॥ . | ३ कप, रङ्ग, र यय के गर्व स्वरूप द्रव्य ( रूपकसमास ) ।

  • * भी की उक्ति नायिका में “मान, मुख दिउराव, नींदु नहि न, करि अनुराग” (मेरी बात है।

मान, मु ट्रिान्ला, निद्रित मत हो, से कर ) अभिसरण का अवसर दिउन्नाती है कि इस समय २ माम घर में : धीर कुमार पति भी सपत्नियों पर अशक्त हैं। इम अर्य पर यह कुण्डलिया है।

  • :: सुख दिई पश्या मुग्य मान ।