पृष्ठ:बिहारी बिहार.pdf/९६

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- - | विहारीविहार ।। | .............पुनः । पुतरी पातुरराय नचत टठकत ठमकत पुनि । झूमि वाहवा करत मनहु

  • जुग भौंह परन गुनि ॥ दरस इनाम हि देहु लाल रिझवार पाागि रँग । सुकवि

तुमहिं विनु वृथा भाव स पूरे सव अंग ॥ ६ ॥ विहँसि बुलाय बिलोकि उत प्रौढ़ तिया रस घूमि । पुलकि पसीजति पूत को पियचुम्यो मुँह चूमि ॥ ३९ ॥

  • पिथचुम्यो मुंह चूमि होत रोमांचन सगवग। लिङ्गत मद माति पीय-

अङ्गाने मेले अंग ।। चकपकात सुत देखि विचारति निजहिय रहसी । सुकवि

  • हिँ चितै लजाइ मन हिँ मन प्यारी विहँसी ॥ ६१ ।।
  • सोवत लखि मन मान धरि ढिग सोयो प्यौ आय।

| रही सुपन की मिलन मिलि पियहिय स लपटाय ॥४०॥ पियहिये स लपटाये रही गयो सान अचानक । वारि गई लखि मुरली- धर के नटवर बानक ॥ कौन मुटु तिय अहै लही निधि करें जो खोवत । धन्य धन्य सो सुकवि मिले हरि जाक सावत ।। ६२ ।। -*-*-*- -

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-*-*- - --- - 4 पियहिय स लपटाइ रही जनु रसनिधि पाई । नैन बँदि तेहिं ध्यान करत सव रैन विताई ॥ धिक तिन दिवसन सुकवि गये जो हरिविन रोवत । धन्य धन्य वह न मिले पिय जामें सोवत ॥ ६३ ।। - g rin a ph

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त्रिवली नाभि दिखाई के सिर ढकि सकचि समाहि ।। गली अली की ओट है चली भली विधि चाहि ॥११॥ चली भली विधि चाहि त मन हरि सों अटक । फिरि फिरि सभा । ६ ; दोहा ऊदल को टोका में नहीं है ।