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कुछ का नकल लेवै।” ( अँगरेजी सन १८०३ साल १० आईन ५ दफा )।

‘छोटे वो बड़े के पढ़ने के बासते’ ही नहीं बल्कि 'अदालत' के बूझने के वास्ते भी देशी भाषा और देशी अक्षर का विधान था। अदालत में भी देशी भाषा को स्थान मिला था―

मोफसील कोट अपील के अदालत के साहेब लोग जो कागज के देसी भाखे को अछर मे खाह अपील के मोकदीमा खाह और मोकदिमा मे सदर दीवानी अदालत में भेजही अगर उसके तरजमा के वासते खास हुकुम जारी नही हुआ रहै उनका तरजमा नहीं करहोगे।” ( अंगरेजी सन १८०३ साल ५ आईन २९ दाफा )।

'नरजमा' के बारे में याद रहे कि―

“जीस वखत इंगलीसतान वादसाह वो उनके कौसल के साहेब लोग के हजुर में मोकदीमे का अपील सदर दीवानी अदालत के साहेब लोग मनजुर करही चाहाअै के उस मोकदमे के बाबत के तमाभी कऐदाद वो डीकरी ईआ हुकुम मैं गवाही लोग के जबानवनदी वो दसतावेजात का दो नकल अगर देसी जबान में रद्दै अँगरेजी जबान से तरजमा कराऐ कै तैआर करावही वो उसके तैआरी के पीछे अदालत के मोहर दो रजीस्टर साहेव के दसखत से जुदा जुदा इंगलीसवान बादशाह वो उनके कोसल के साहेब लोग के हजुर से उसके भेजने के बासतें जेता जलदी रवाने करने का ईतफाक होऐ नौआब गवरनर जनरल बहादुर के पास दाखील करही!”( अगरेजी सन १८०३ साल ५ आईन ३४ दफा )।

प्रकुत अवतरणों के आधार पर यह आसानी से कहा जा सकता है कि सचमुच कंपनी सरकार ने आरंभ में हमारी देश-