पृष्ठ:बिहार में हिंदुस्तानी.pdf/२०

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स्तान की आम जनता की बात। सो उसके लिये उसमें धरा हो क्या है? वह उसकी जवान ही कब रही? निदान, यह आवश्यक हो गया कि उर्दू भी उसी तरह मरने से बचा ली जाय जिस तरह कभी फारसी बचा ली गई थी। उर्दू की ईजाद उस समय हुई जब उर्दू याने दरवार की प्रतिष्ठा थी और हिंदुस्तानी की ईजाद उस समय हो रही है जब प्रजा ने राजा को दबा लिया है। मतलब यह कि चीज वही है पर नाम दूसरा है। हमें चीज और नाम के भेद को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए और वह उपाय करना चाहिए जो हमारे उत्थान का कारण हो, पतन का नहीं।

इधर फोर्ट विलियम की कंपनी सरकार हिंदी भाषा और नागरी अक्षरों को लोकभाषा तथा लोकलिपि के रूप में अपना रही थी तो उधर उसी फोर्ट विलियम के कालेज में डाक्टर गिल- क्रिस्ट तथा उनके साथी मुंशी उर्दू की हिमायत में लगे थे और कंपनी के साहबों को कुछ ऐसा पाठ पढ़ा देना चाहते थे कि वे सरकारी कामकाज के लिये जल्दी से जल्दी फारसी सीख लें। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखते थे कि कुछ देशभाषा तथा देशलिपि का भी बोध हो जाय। बिहार के सदलमिश्र और आगरा के लल्लू जी लाल ने डाक्टर गिलक्रिस्ट के आदेश से जो कुछ किया वह तो केवल निमित्त मात्र था। कालेज तथा डाक्टर गिलकिस्ट की पूरी पूरी कोशिश तो दरवारी जबान उर्दू के लिये ही रही। उर्दू को ही फोर्ट विलियम कालेज ने सराहा