पृष्ठ:बिहार में हिंदुस्तानी.pdf/२९

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तहरीक की बंगाली में फ़र्क करना होगा। मैं यह नहीं चाहता कि उर्दू में से फ़ारसी अल्फ़ाज़ चुन चुनकर अलहदः कर दिए जायँ। यह हिंदुस्तानी ज़बानों की ख़सूसियत ख़ासः मालूम होती है कि वह किसी अजनबी ज़बान के मुहाविरे और लफ़्ज़ किसी मनलब को अदा करने के लिये आसानी से अपने में शामिल कर लेती हैं इस वास्ते कि खुद उनमें उसके अदा करने के लिये लफ़्ज़ मौजूद नहीं। चुनांच हिंदुस्तानी ज़बानों में बहुत से फ़ारसी अल्फ़ाज़ ने राह पाई। इसी तरह अँगरेज़ी लफ़्ज़ भी अपनाए जा रहे हैं और ग़ालिबन् आइन्दः और ज़्यादः अपनाए जायेंगे। यह दूसरी ज़बानों के लफ़्ज़ जो हिंदुस्तानी ज़बानों में अपनाए गए हैं बच्चों को सिखाने होंगें। हम इस बात पर जोर देते हैं कि बच्चों को जो ज़बाने सिखाई जायँ वह मुल्क की हक़ीक़ी ज़बानें होनी चाहिएँ जो आम तौर पर बोली जाती हैं और जिन्हें अवामुन्नाम समझ सकें। मसनूबी ज़बानें सिखाने से कोई फ़ायदा नहीं जिन्हें आम लोग नहीं बोलते और न समझ सकते हैं। अगर जदीद तसव्वुरात को अदा करने के लिये जदीद अल्फ़ाज़ की ज़रूरत है तो मैं समझता हूँ यह बेहतर होगा कि अँगरेज़ी अल्फ़ाज़ रायज किए जायँ बजाय इसके कि किसी अजनबी ज़बान के अजनबी अल्फ़ाज़ क़बूल किए जायँ। यह ज़रूरत इस वास्ते पेश आयगी कि हम अँगरेज़ी की आला तालीम के ज़रियेह जदीद तसव्वुरान को अह्ल हिंद के सामने पेश कर रहे हैं। हिंदी और हिंदुस्तानी के मुतल्लिक मेरा ख़्याल है कि इन दोनों को इस तरह सिखाना चाहिए गोया वह दोनों एक ज़बान हो जो दो मुख्तलिफ़ रस्म ख़त में लिखी जाती हैं। मैंने अभी जो कुछ कहा है उससे अंदाज़ह कर लिया गया होगा कि मैं क़दीम और दक़ियानूसी हिंदी की हिम्मत अफ़ज़ाई के ख़िलाफ़ हूँ। हिंदी की जो क्लास की किताबें सूबाजात शुमाल