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बिहार में हिंदुस्तानी

बुद्धगया में बोधिवृक्ष के नीचे गौतम बुद्ध को जो बोध प्राप्त हुआ उसका वितरण जनसमाज में लोकमाया या जनता की नित्यप्रति की बोलचाल की भाषा में किया गया। गौतमबुद्ध के कारण लोकभाषा को जो महत्त्व मिला वह झिर कभी कम न हुआ, बल्कि प्रतिदिन कुछ न कुछ बढ़ता ही रहा। यह ठीक हैं कि आगे चल कर ब्राह्मणों के प्रभुत्व में आ जाने के कारण शिष्ट भाषा संस्कृत को अधिक प्रोत्साहन मिला, पर साथ ही यह भी निर्विवाद है कि संस्कृत के साथ ही साथ एक सामान्य चलित राष्ट्रभाषा का भी व्यवहार होता रहा जो समय समय पर पाली, प्राकृत और अपभ्रंश या भाषा के नाम से ख्यात रही और आज इस- लाम की कृपा से हिंदी अथवा हिंदुस्तानी के रूप में प्रतिष्ठित हो गई है। उसका यह नाम कब और कैसे पड़ा इसके फेर में पड़ने की कोई जरूरत नहीं, आज इतना सभी लोगों को मान्य