पृष्ठ:बिहार में हिंदुस्तानी.pdf/३०

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मग़रबी(यू॰ पी॰) में छापी जा रही हैं उनमें फ़ारसी के ऐसे अल्फ़ाज़ इस्तेमाल किए जाते हैं जिन्हें लोग समझ सकें। अगर उन्ही किताबों को फ़ारसी रस्मख़त में लिखा जाय तो वह ऐसी ख़ालिस हिंदुस्तानी ज़बान बन जायगी जिसको रायज होते देखने की मेरी दिली ख़्वाहिश है।" (उर्दू, जुलाई सन् १९३८ ई॰. वही पृ॰ ५१९-५२३)

हिंदी, उर्दू और हिंदुस्तानी के विषय में लेफ्टनेंट गवर्नर जनरल बहादुर की जो राय है वह बहुत कुछ नपी तुली और सटीक है। बड़े बड़े उर्दू के हामियों को चाहे वह अप्रिय भले ही हो पर वह है बिल्कुल खरी और सच्ची। हिंदुस्तानी के प्रेमियों के लिये भी वह कुछ कड़ी हो सकती है पर वह हैं सचमुच देश की मिलीजुली भाषा हिंदी याने हिंदुस्तानी। आईनों के प्रसंग में पाठक देख चुके हैं कि वहाँ हिंदुस्तानी भाषाके साथ सर्वत्र विधान है नागरी लिपि का और अब ७० वर्ष बाद पाठक देखते हैं कि हिंदुस्तानी भाषा का अर्थ हो गया फारसी लिपि में लिखित चलित हिंदी। हिंदुस्तानी के लिये गोया लाजिम हो गया कि वह फारसी और सिर्फ फारसी लिपि में ही लिखी हो। हिंदुस्तानी भाषा के लिये यह फारसी लिपि की कैद क्यों लग गई, कुछ इसका भी इतिहास है। किंतु यहाँ उस इतिहास की गवेषणा में मग्न हो जाना ठीक नहीं। यहाँ तो इतना ही पर्याप्त है कि वास्तव में यह अंगरेजी सरकार की देख रेख तथा कूटनीति का परिणाम है कि अब हिंदुस्तानी का अर्थ हो गया फारसी लिपि में लिखित चलित हिंदी। हिंदी को हिंदुस्तानी बनने के लिये फारसी लिपि को ठीक