पृष्ठ:बिहार में हिंदुस्तानी.pdf/३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

(३५)

फहम हिंदुस्तानी है, जिसको हिंदुस्तान का बच्चा बच्चा समझता है। यदि आपने कहीं इसके विरोध का नाम लिया तो आप मुई संस्कृत के हामी साबित कर दिए गए और आपको राष्ट्र-द्रोही होने का फतवा चट नसीब हो गया; किंतु आज से डेढ़ दो सौ वर्ष पहले कहीं इस तरह की जबान का निशान भी न था। कंपनी सरकार की हिंदुस्तानी कुछ और ही थी। उसका एक नमूना आपके सामने है। जरा ध्यान दीजिए और दोस्तों की राय भी ले लीजिए। साथ ही भूल न जाइए कि यह वह हिंदुस्तानी है जो फारसी की सरकार में दाखिल होने जा रही है। वह है—

मैं फलाना रहनेवाला फलानी जगह का हूँ में फलाना फरयादी रहनेवाला फलानी जगह का फलाने असामी रहनेवाले फलानी जगह के नाम में नलिश की अरजी गुजरानी और मुझको अपने मोकद्दने के गवाह मोकर्रर किया है इसलिऐ एकरार करता हुँ वो मोचलका लिख देता हुँ के फलानी तारीख फलाने जिले या शहर के मजिसटरट साहब के हुजूर में हाजिर होकर गवाही दूँगा और जिस सूरत में के हाजिर न हुँ जेतना डाँड मुझपर ठहरे जिसके देने का हुक्म मजिसटरट साहेब की तरफ से हो और जेतना खरच के मेरी गैरहाजिरी से सरकार की तरफ से पाया जावे वह सब अपने जिममे पर लाजिम समझुँ इसलिऐ यह दसतावेज मुचलके के तौर पर लिख दी के वकत पर काम आवे। लिखा तारीख फलानी सन फलाना मोताबिक फलाने का" (अँगरेजी सन् १८०७ साल ९ आईन १५ दफा ३ तफतील)

सोचने और समझने की बात है कि 'फ़ारसी' के राज्य में जिस हिंदुस्तानी का बोलबाला था वही हिंदुस्तानी आज 'हिंदुस्तानी'