पृष्ठ:बिहार में हिंदुस्तानी.pdf/४

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हो गया है कि वस्तुतः यह एक विदेशी संज्ञा है जो विदेशियों की कृपा से हमारी राष्ट्रभाषा को मिली हैं, और उन्हीं के प्रसाद से इसका प्रचार भी विश्वव्यापक हो गया है। इस हिंदी शब्द में जो जादू काम कर रहा है वह जरा काना हो गया है। इसी काने- पन के कारण आज वह उन्हीं लोगों की शुभ यात्रा में कुछ अप- शकुन कर रहा है जो वास्तव में उसके विधाता या जन्मदाता थे। कारण प्रत्यक्ष है। आज उन्हें जो उसमें कानापन दिखाई देता है उसका सीधा और सच्चा सवय यह है कि आज उनका लक्ष्य ही कुछ और हो गया है। आज उनके सामने आँख खोल कर अच्छी तरह देखने का प्रश्न नहीं है, बल्कि प्रश्न है एक आँख मूँँद कर निशाना ठीक करने का। फिर उन्हें अपने बापदादों की हिंदी कानी नहीं नो और क्या दिखाई दे: आखिर दुनिया एक दर्पण हो तो है?

गौतम बुद्ध ने लोकवाणी को महत्त्व दिया था और उनके अनुयायियों ने उसी को अपनाया। ठीक है, पर इसका अर्थ इतना ही ग्रहण करना चाहिए कि उनके संप्रदाय में लोकभाषा की प्रतिष्ठा हुई और उसी के द्वारा प्रचार का कार्य किया गया। बौद्ध मत के व्यापक हो जाने पर जिस व्यापक 'भाषा' की शरण ली गई वह देश की चलित राष्ट्रभाषा थी और ब्राह्मी की सगी संतान थी। पंक्तियों में लिखी जाने के कारण उसी का नाम 'पाली' प्रचलित हो गया और वहीं बौद्धों की शिष्ट भाषा बन गई। अब बौद्धों के प्रधान केंद्र मगध अथवा आधुनिक बिहार में जिस