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"हाँ बेशक! हिन्दू धर्म के हिसाब से तू यकीनी काबिले-नफरत है।" (जगद्गुरु और भंगी, नं॰ ६६ पृ॰ ६)

शंकराचार्य की जबान पर 'मज़हब' की जगह 'धर्म' कैसे आ गया, यही आश्चर्य है। शायद 'मजहब' को 'नफ़रत' से पाक रखने के लिये। खैर, पंडितों की गुफ्तगू भी देख लीजिए। कितनी आमफहम, कुदरती और सटीक है! संतान, स्वर्ग और नरक को आज कौन समझता है!

"पंडित रामलाल—औलाद से सिवा रंज के कुछ नहीं मिलता।
पंडित शामलाल—औलाद दुनिया को जहान्नुम बना देती है।
पंडित करताकिशुन—औलाद दुनिया को जन्नत बना देती है।"

रंग में भंग, नं॰ ६७ मजीद मल्लिक, पृ॰ १२

अच्छा, रीडरों के प्रसंग को अभी अलग रखिए और सरकार की सच्ची रीडरों को मैदान में आ जाने दीजिए। फिर देखिए कि बोलचाल की हिंदुस्तानी जबान क्या है। हिंदुस्तानी जबान का एक माहवार रिसाला 'होनहार' भी निकला है। कुछ उसकी बानगी भी लीजिए। 'गीत' का नाम तो आपने भी शायद सुना होगा। शायद इसलिये कि यह मुई संस्कृत का शब्द है, और इसका असली हिंदुस्तानी नाम है 'तराना'। पर हिंदियों की हठधर्मी तो देखिए। फुटनोट में (होनहार, मई पृ॰ ५२) 'तराना' का अर्थ दे दिया 'गीत'; गोया 'गीत' 'तराना' से कहीं अधिक आमफहम है। 'रहमत' की जगह 'कृपा', 'हुन' की जगह 'अमृत', 'जन्नत' की जगह 'स्वर्ग', 'जलवा' की जगह