पृष्ठ:बीजक.djvu/१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

बीजककी अनुक्रमणिका । विषय. | पृष्ठ. | विषय. पृष्ठ. फका कमल किरनि में पाबे ४२५ | ववा वह वह कर सब कोई ४३८ खखा चाहै खोरी मनावे ४२५ | शशा शर नहिं देखै कोई ४३८ गगा गुरुके वचनहि मान ४२६ | षषा परा कहै सब कोई ४३९ बघा घट विनशे घट होई ४२६ | ससा सरा रच्यो बारियाई ४३९ ङङा निरखत निशिदिन जाई ४२७ | हहा होय होत नहिं जाने ४४० चचा चित्र रचो बहु भारी ४२७ | क्षक्षा क्षण परलय मिटिलाई ४४० छछा आहि छत्रपति पासा ४२८ ॥ इति चौतीसीं ॥ नना ई तन नियतहि जारो ४२८ ॥ अथ बिप्रमतीसी ।। झझा अरुझि साझ कित जाना ४२९ अना निर्खत नगर सनेहू ४२९ सुनहु सबन मिलि बिप्र मतीसी ४४१ टटा विकट बात मन माहीं ४३० | ॥ अथ कहरा ॥ ठठी ठौर दूरी ठग नियरे ४३० | सहज ध्यान रहु सहज ध्यान रहु ४४७ डडा डर किन्हे डर होई ४३१ | मत सुनु माणिक मत सुनु माणिक४५५ दहा ठूढ़तही कित जाना ४३१ राम नाम को सेबहु बीरा ५५९ पणा दूर बसो रे गाऊ ४३१ | ओढ़न मेरो राम नाम ४६० तत्ता अति त्रियो नहिं नाये ४३२ | रामनाम भजु रामनाम भजु ४६२ थथा थाइ थहो नहिं जाई ४३२ | राम नाम बिनु राम नाम बिनु ४६७ दृदा देखहु विनशनि हारा ४३३ | रहहु सम्हारे राम विचारे ४७१ धधा अर्ध माहिं अंधिआरी ४३३ | क्षेम कुशल और सही सलामत ४७३ नना वो चौथे मह जाई ४३४ | ऐसन देह निरापन बौरे ४७४ पपा पाप करे सब कोई ४३४ | हौं सत्रहिन में हौं नाहीं ४७५ फफा फळ लागो बड़ दूरी ४३५ | ननदी गे हैं विषम सोहागिन ४७८ बा बर बर करे देख सब कोई ४३५ । | ईमाया रघुनाथ की बौरी ४८० भभा भरम रहा भर पूरी ४३५ ! ॥ इति कहरा | ममा सेये मर्म न पाई ४३६ । यया जगत रहा भर पूरी ४३६ । ॥ अथ बसंत ॥ ररा रारि रहा अरुझाई ४३७ | जहं बाहिं मास वसंत होय ४८१ लला तुतुरे वात जनाई ४३७ | रसना पढ़ि भूले श्री बसंत ४८३ , , शाई ४३७ |नई बार अथवसत ॥ ढला तुतुरे