पृष्ठ:बीजक.djvu/१०२

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माहे तवय कक्षसगुरु रमैनी। (५१) अंगीकार करायदेइ है । परमतत्त्व जे श्रीरामचन्द्र हैं तिनको नहीं जाने जे अने हैं तिनको कहैं ॥ २ ॥ परमतत्वकानिजपरवाना । सनकादिकनारदसुखमाना ३ याज्ञवल्क्यऔजनकसँवादा । दत्तात्रयीवरसस्वा ४ परमतत्त्व जे श्रीरामचन्द्र तिनको निजते परमानत भये याहीहेतुते सनकादिक औ नारदर्जे ते सुखजानत भये अर्थात् सुखीहोतभये भाव यहहै कि ने कोई परमपुरुष श्रीरामचन्द्रको अपने ते परमानैहैं तेई सुखीहाय ३ औफिर कहै हैं याज्ञवल्क्य औ जनकको सम्बाद भयो सो याज्ञवल्क्य कह्यो जोपरम तत्त्व श्रीरामचन्द्र सो जनकजी जान्योहै औ वही तत्त्व दत्तात्रयी चौबीसगुरुवनाय संसारते वैराग्यकैकै तात्पर्य वृत्तितेजान्यो है ॥ ४ ॥ वहैवशिष्ठराममिलिगाई । वहैकृष्णऊधवसमुझाई ॥६॥ वहैवात जो जनकदृढ़ाई। देहे धरे विदेह कहाई॥६॥ वही परमतत्त्व जे श्रीरामचन्द्र हैं तिनको मिलिकै गायकहे कहिकै वशिष्ठजी जान्यो है औ वही परमतत्त्वे तात्पर्यवृत्ति करिकै कृष्णचन्द्र ऊधवको उपदेश कियॉहै ५ वही परमतत्त्व ने श्रीरामचन्द्र तिनको दृढ़स्मरण कैकै है धरे जनकनी बिदेह कहावत भये इहां वैजनक जो कह्यो सो वा वंश में एक जनक नाम करिकै राजा भये है तेहिते बिदेह होत आये और एक रघुनाथ जी के श्वसूर शृध्वज भये हैं तिनको जनक कहत रहे हैं तिनका कह्या है सो वे और जनक हैं । ये और जनक हैं ॥ ६ ॥ साखी ॥ कुलअभिमानाखोयकै, जियतमुवानहिंहोय॥ • | देखत जोनहिंदेखिया, अदृष्टकहावे सोय ॥७॥ ऐसे ने परमतत्त्व श्रीरामचन्द्र हैं तिनको जानि आपनो कुलाभिमान खोपके कहे त्यागिकै नियतै मुवा असनाभये अर्थात् हंसस्वरूप में टिकिकै पांचौ शरीर ते भिन्न ना भये । देखत जो ना देखै सो अदृष्टि कहाँवै सो परमतत्त्व जे श्री