पृष्ठ:बीजक.djvu/११९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

(६८) बीजक कबीरदास । बलिराजाको छल्यो है सो या ब्राह्मण जोमाया सबलित ब्रह्म सो कौनको काजकीन्हों। है अर्थात् नहीं कीन्हों हैं ॥ २ ॥ ब्राह्मणहीसवकीन्होंचोरी । ब्राह्मणहीकोलागीखोरी ॥ ३ ॥ वहीब्रह्म सबकी चोरीकियो है काहेते कि मायातो जड़है यह चैतन्य ब्रह्मही माया सबलितद्वै मायहूको कर्ताके मेरेसांचेज्ञानको संसारमें शंकादिक पदार्थ बनाइ चोराइराख्यो है सो जब व्यापकरूप ते सबपदार्थ ब्रह्महीठहरयो औब्रह्महीके संयोगते मायाकर्ता भई है तब ब्रह्महीको खारिलगी कि वही सब करैहै ॥ ३ ॥ ब्रहाहिकीन्होंग्रंथपुराना । कैसेहुर्केमोहिंमानुषजाना ॥ ४॥ | वहामाया सबलित जो ब्रह्महै ताहीते सब वेद पुराण निकलें हैं ताहीते नानामतभये कोई निराकार ब्रह्मही कोई चतुर्भुज कोई अष्टभुज इत्यादि मानतभये । तुम सब बसहु जो निर्गुण के सगुणपरे वेदपुराणको तात्पर्यताको जा• निकै ऐसो मेरो मनुष्य रूप कैसहुकैकहे जसतसकै कोई बिरलेसंत जाने हैं। और नहीं जानै हैं अथवा मोको सब बातके जनैया श्रीरामचन्द्रको सांच मनुप्यरूप है तामें प्रमाण ॥ ( आत्मानमानुषंमन्ये रामदशरथात्मनम् ) ॥ इति और ने नानापंथ वेदतनिकसे तिनको आगे कहें ( दशतिसपनितिदशः गरुड़ः सरथोयस्यसः दशरथः विष्णुः सएव आत्मजोयस्यसः दशरथात्मजः तं ) ॥ ४ ॥ यकसेब्रह्महिपन्थचलाया। यकसेहंसगोपालहिगाया ॥६॥ यकसे कहे एकजो माया सबलित ब्रह्म ताही को प्रतिपादन करत ब्रह्लनाना शास्त्रके नानापंथ चलावतभये । ॐ यकसे कैहै एक जो माया सबलित ब्रह्मताहीको बिचारकरत हंसजो जीव सो गोपालहि गावतभय अर्थात् गोजोइंदिताको पालनवारो जो मनताहीको गावतभये अर्थात् मनमुखी पंथ चलावत् भये औ ब्रह्माने वेदकह्य है वेदते सबमत निकसे हैं जीवनको जोजुदेकर कै कह्यो सोमेरे सम्मुखको जो अर्थ है ताको छपाय दीन्हों वेद अर्थ नानादेवतन. यज्ञादिमें लगायीन्हे ॥ ५ ॥