पृष्ठ:बीजक.djvu/१२

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५५० बीजककी अनुक्रमणिका । विषय. पृष्ठ | विषय. | पृष्ठ. रैमहिते रंग ऊपजै ... ५३९ | मल्यागिरिके बासमें वृक्षरहाजाग्रत रूपी जीवहै ... ५३९ | सबगोय ... ... ५४७ पांचतत्व है ईतन कीन्हा ५४० | मल्यागिरि के बासमें वेधापांचवत्व के भीतरे ... ५४० | डाकपलास ... ... ५४७ अशुन तख्त अडि आसने ... ५४० | चढ़ते चलत पगु थका ... ५४७ हृदया भतिर आरसी .... ५४१ | झालि परे दिन थिये ... ५४८ ऊंचे गांव पहाड़ पर ... ५४१ | मन तो कहै कब जाइये ... ५४८ जेहि मारग गै पंडिता ५४१ | गृही तजिके भये उदासी ५४९ हे कबीर हैं उतरि रहू ५४१ | रामनाम जिन चीन्हिया .... ५४९ घर कबीर का शिखर पर ५४२ | जेजन भीगे राम रस ... ५४९ बिन देखे वह देशकी ५४२ || काटे आम न मौरसी शब्द शब्द सब कोई कहे ५४२ | पारस रूपी जीव है ... ५५० पर्बत ऊपर हर बसै ... ५४२ | प्रेम पाटका चोलना .... ५५० चन्दन बास निवारहू ... ५४३ | दर्पण केरी गुफामें ... ... ५५१ चंदन सर्प लपेटिया... ... ५४३ | ज्यों दर्पण प्रति बिम्ब देखिये ५५१ ज्योंमुदाद स्मसान शिल ... ५४३ | जो बन सायर मुज्झते | ... ५५१ गही टेक छाडे नहीं .... ५४४ | दोहरा तो नवतन भया ... ५५२ चकोर भरोसे चन्द्रके (नेटमें)*५४४ | कबिरा जात पुकारिया। झिल मिल झगरा झूलते ... !:४४ | सबते सांचा है भला ... ५५३ गोरख रसिया योगके ... ५४५ सांचा सौदा कीजिये....... बन ते भागि विहडे फ्डा ... सुकृत वचन मानै नहीं बहुत दिवस ते हीठिया ... ५४५ | लोग आग समुद्र में ... ५५४ कबिरा भर्म न भजिया .... ५४६ | लाइ लावन हारने की .... ५५४ बिनु डाँड़े जग डांडिया .... ५४७ बुंद जो परा समुद्र में .... | जहर जिमी दै रोपियो ... ५५५ ॐ यह दूसरी पुस्तकों की४१वीं साखी | दौ की डाही लाकड़ी ... ५५५ है किन्तु इस टीकामें नहीं ली हैं मैंने नोट में | विरह की ओदी लाकड़ी ... ५५५ ६ दियाहै । | विरह बाण जेहि लागिया .... ५५६

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