पृष्ठ:बीजक.djvu/१८२

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( १३२ )
बीजक कबीरदास ।

( १३२ ) बीजक कबीरदास । के लोकनाय तिनके तिनके रूपधारिवो सो मिटिजायहै।संसारते छूट ही जायें। सो वे बोले हैं औ मन स्थिरāगयो है कहेमनको संकल्प बिकल्प तो, छूटनहीं है मनते भिन्न हुँवो कहा है कि संकल्प विकल्पही मनको स्वरूपहै जब संकल्प विकल्प छुटिगयो तब मनते भिन्न है गयो सो कैसे मनते भिन्नहोइगो सो साध- न आई कहैं ॥४॥ सावी ॥ तनरहते मनजातहै, मन रहते तन जाय ।। तन मन एक वैरहो, हंस कवीर कहाय ॥ ५॥ तनज वा शरीर स्थूल सूक्ष्मकारण महाकारण सोअर्थअनुसंधान करत रामनाम जपत २ तनते जब रहित वैगया तब मन जातरहै है औ मन जाय है तव चारिउशरीर जात रहें । सो जब तनमन एकद्वैर है कहे सिगरें तन प्राणमं बंधे हैं सो प्राण औ मनको एकघर करिइसोनाम जपिविधिजानि- तव संकल्प विकल्प मनको छुटिजाय हैं। मनतो संकल्प बिकल्पकरूपहै सो जब- संकल्प बिकल्पछुट्यो तब मननाश द्वैगयो । तब चारिउशरीरको हेत जोहै ज्ञान सौऊ जातरहेहै तव चारिउ शरीर भिन्नद्वैनाय एक शुद्धआत्मा में स्थिर द्वैरहे हैं मुक्ति द्वैनाय हैं जैसे पूर्बशुद्ध समष्टिरूप में रह्यो है तैसे सो द्वैगयो। जैसे सम हिनीव जव रह्यो है तब जगत् को कारणरह्यो आयो है साहबको न जानिबों रूप ताते संसारही द्वैगयो है तैसे यह जो शरीरनमें साहबको भजन करिराख्यों सो जब मनादिक याकेछूट गये शुद्ध द्वैगयो तब वाही भांति साहब को जानें को कारण रहिगयो। काहेते कि राम नामको अर्थ साहब मुख जानिराख्या है। सो मङ्गल में साहब कहिआये हैं कि जो रामनाम जपिकै मोको जानै तो मैं हंसरूपदै अपने पास बुलायलेऊयाहीते साहब हंस रूप देइ है तब वह काया- को बीरजीव हंस कहावैहै। कैस हंस कहावै है कि असारजे चारिउ शरीर औ मन माया रूप पानी ताकी छोडिदियो औ सारजहै साहबको ज्ञानरूपद्धता- कोग्रहणकिया औ अकई रामनाम जो मोती है ताको चुनन लग्यो कहे लेन- छग्यो सोकबीरजी लिखबै कियो है शब्दमें (निर्मल नामचुनि चुनि बोले) अरु- अह रामनामई है अरु अकह निर्गुण सगुण के परेहै. श्रीरामचन्द्रई हैं तामें